Saturday, May 21, 2016

सफ़र-ए-सेक्रेड हार्ट्स

मेरी किताब: एक अधूरा सफ़र
★★★ सफ़र-ए-सेक्रेड हार्ट्स ★★★
माँ और छोटे भाई बरेली आगये थे, पापा अपने काम में मसरूफ़ रहते तो यह सोचकर मेरा दाखिला बरेली के सेक्रेड हार्ट्स स्कूल में ही करादिया , छोटा सा स्कूल देखकर बहुत रोया था लेकिन स्कूल तो जाना ही था पहले काफी दिक्कत का सामना हुआ , लेकिन धीरे धीरे ज़िन्दगी पटरी पर आरही थी कुछ नए दोस्त भी बन गए थे , बहुत जल्दी तो नही लेकिन मेरा दिल लगने लगा था अब दोस्तों के साथ अच्छा वक़्त गुज़ारते थे , मुझे आज भी याद है मेरा दोस्त काज़िम मेरे साथ ही बैठता था गुस्से का बेहद तेज़ और दिखने में बेहद सीधा लगता शुरूरात के कुछ दिन उसी के साथ गुज़रे थे फिर हलके हलके दोस्तों की फहरिस्त लम्बी होतीगयी , पीछे की सीट पर बैठे चुप चाप अपना काम कररहे एक लड़के से बात हुई जिसका नाम शाकिर था वो आज तक मेरे साथ है कुछ दिन में बहुत अच्छा और खुशनुमा माहोल होगया था , हम स्कूल में 6 -7 दोस्तों का ग्रुप मशहूर होने लगा था जिसमे नावेद , अनिल, असीम , जितेंद्र थे , यू समहज लीजिए जैसे कही भी जाते तो सब साथ में ही जाते थे , किसी को दिक्कत होती तो सब साथ में खड़े होजाते नावेद जो मेरा बहुत खास दोस्त था कई बार मेरे लिये छोटी छोटी बातो पर लड़जाता था , एक अलग पहचान होगयी थी हमारी स्कूल के चोकीदार से लेकर डिरेक्टर तक नाम से जानती थी लेकिन हमारी दोस्ती कुछ लोगो की आँखो में खटक रही थी , कुछ लोग हमसे बड़े परशान रहते और कुछ बहुत खुश लेकिन हम इस सब से बेपरवाह जिंदगी को जीने में मस्त थे कैसे भी हालात हो कुछ भी हो हम सब हमेशा एक रहते थे हमारे ग्रुप में अनिल और जितेंद्र हमारे दोस्त थे लेकिन वो हमारे भाई जैसा थे मुझे कुछ होता तो वो बवाल करदेते कुछ लोग हमारी एकता की मिसाल दिया करते थे और कुछ लोगो को परशानी थी क्यों की हम लोगो ने गलत काम करने वाले , गुंडा गिर्दी करने वालो के नाक में दम करदिया था किसी की भी लड़ाई होती तो लोग हमारे पास आते हमे उनके मसले सुलझाने में मज़ा आता था , कुछ टीचर्स हमारी दोस्ती से बेहद परेशान थे , किसी बात को लेकर नए नए कंप्यूटर के मास्टर गुलशन सर से कहा सुनी होगयी थी उन्होंने हमें बहुत हड़काया लेकिन हम उनकी इज़्ज़त करते थे हमने उनसे अकेले में बात की तो वो हमारी बात भी समहज गए उन्होंने हमें समझाया भी , लेकिन स्कूल के अंदर एक शक्स थी ज़ेबा मैमै जिनसे हम बहुत डरते थे इतना डर हमें किसी से नही लगता था कभी उन्हे सामने से आता देखलेते तो रास्ता बदल देते थे वो हमसे बहुत प्यार करती थी हम भी उनकी कोई बात नही टालते थे अक्सर टीचर्स हमारी शिकायत ज़ेबा मैम से ही करते क्यों की उन्हे पता था यह किसी की नही सुनने वाले है ज़ेबा मैम ने हमें कभी नही मारा था पर हम सब लोग उनकी दिल से इज़्ज़त करते

●●●सफ़र अभी जारी रहेगा ●●●
किताब :एक अधूरा सफ़र
तीसरा पड़ाव :सफ़र-ए-सेक्रेड हार्ट्स
लेखक : साइम इसरार

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