Thursday, February 2, 2017

बच्चों के ख्वाब भी शहर के बच्चों के ख्वाबों से मिलते-जुलते

@●●●साइम इसरार के कलम से●●●●●
शहर से दूर पक्की सड़क से कच्ची सड़क की ओर एक पतले से रास्ते पर दोनों तरफ लगे हुए लंबे-लंबे पेड़ एक अलग भारत की तस्वीर दिखाते है कुछ दूर चलने के बाद एक छोटा सा गांव जहां ना तो बिजली और ना पानी की सही व्यवस्था वही टूटे-फूटे पुराने रोड और बच्चों की पीठ पर लगा हुआ बस्ता एक कहानी बयां करता है छोटे-छोटे मासूम बच्चे सुबह सवेरे कंधे पर किताबों का बोझ लिए अपने भविष्य की नई परिभाषा लिखने को जा रहे थे कुछ देर रुक कर उनसे बात हुई तो पता चला उन बच्चों के ख्वाब भी शहर के बच्चों के ख्वाबों से मिलते-जुलते हैं लेकिन अफसोस उनको वह साहूलाते मोहया नहीं है जो शहर के बच्चों को है ना तो स्कूल जाने का साधन है और ना ही अच्छे स्कूलों की व्यवस्था लेकिन सपनों में कोई फर्क नहीं था सपने वही जो शहर के बच्चों के होते हैं उनसे ही मिलते हुए थे उन बच्चों की आंखों में मैंने बड़े ख्वाबों को पढ़ा था एक बच्चे ने बताया रात को मिट्टी के तेल से जले हुए लैंप की रोशनी में वह अपनी जिंदगी के ख्वाबों की जंग लड़ रहे हैं मेरे लिए यह कोई नया अनुभव नहीं था आश्चर्यजनक जरूर था क्योंकि मैं दो अलग-अलग भारत को देख रहा था और मुझे फर्क भी नजर आने लगा कुछ देर बात होने पर पता चला पिताजी के पास इतने पैसे नहीं के वह हमें बड़े स्कूल में पढ़ा सकें लेकिन वह सरकारी स्कूल भी उनके लिए कोई छोटा नहीं था भले ही वहां कंप्यूटर की शिक्षा ना हो लेकिन उन बच्चों का दिमाग एक कंप्यूटर से कम भी नहीं लगा कुछ सवाल पूछने पर महसूस हुआ यह भी अपने गांव के google हैं देश के राष्ट्रपति से लेकर अर्थव्यवस्था और ना जाने कौन से मुद्दे जो मुझे भी मालूम नहीं थे उन्होंने 2 मिनट में समझा दिए मालूमात उनकी कम थी लेकिन इतनी भी कम नहीं कि मैं नहीं समझ पाता तभी अचानक एक बच्चे ने बताया पिताजी सुबह काम पर चले जाते हैं और हम अपने काम पर पिताजी का काम मजदूरी करना है और हमारा काम पढ़ाई करना पिताजी के और मेरे काम में फर्क इतना है कि वह शाम को आकर सो जाते हैं और मैं 12:00 बजे तक एक टिमटिमाती हुई रोशनी के साथ अपने भविष्य की लड़ाई लड़ता हूं मैंने पूछा इतनी जानकारी कहां से मिलती है तो जवाब बड़ा ही अजीब था स्कूल से लौटते वक्त गांव की चौपाल पर बड़े बूढ़ों की हुक्के की गड़गड़ाहट के बीच थोड़ा समय बैठ जाते हैं उनकी बातें सुनकर हमें यह जानकारी मिल जाती है और कुछ गुरु जी की बातों से जिंदगी की जंग के दो अलग अलग रुप मैंने देखे यह मेरे लिए एक अलग ही अनुभव था यह कोई बड़ी बात नहीं थी लेकिन इन बातों ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया थोड़ा दिमाग आप भी लगाइए क्या फर्क है शहर और गांव के बच्चों के बीच इन बच्चों का सफर भी अधूरा है लेकिन काबलियत पूरी है

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