Sunday, May 22, 2016

मेरी किताब: एक अधूरा सफ़र ★★★ सफ़र-ए-सेक्रेड हार्ट्स ★★★

मेरी किताब: एक अधूरा सफ़र
★★★ सफ़र-ए-सेक्रेड हार्ट्स ★★★
पेज :2
3 साल के सफ़र में बहुत कुछ सीखने को मिला और काफी लोगो से मुलाक़ात करने का मौका मिला ,अक्सर हमारी दोस्ती की वजह से हम स्कूल में काफी मशहूर होगये थे , छोटे से छोटा बच्चा हो या बड़े से बड़ा हमारे नाम से जनता था , कुछ भी काम हो हम सबसे आगे रहते थे कुछ 12 कक्षा के बच्चों को हमसे दिक्कत थी लकिन कभी कुछ बोल नही पाये क्यों की हम दोस्तों की एकता ही हमारी ताकत थी , स्पोर्ट्स डे हो या स्कूल में मेला हो हम हर जगह सबसे आगे रहते सबसे ज़्यादा अगर कोई बच्चे चर्चा में रहते तो वो हम थे दीवाली में धमाका हम करते और पिटाई किसी और की लगती थी उस वक़्त ज़ैदी सर और शनवाज़ सर हमें बहुत समझते थे "बेटा एक साथ मत घुमा करो" लेकिन हम बेपरवाह ज़िन्दगी जीने में मस्त थे शायद कोई एसा दिन नही जाता होगा जिस दिन कोई नया कारनामा नही करते थे , आज भी याद है शायद वो भूल भी गये होंगे उस वक़्त निर्भय सर हमे अक्सर कहा करते थे तुम लोग कैसे सुधरोगे तुम लोग पढ़ने आते हो या शैतानी करने , राधा मैम तो हमे ऑफिस के बहार देख लेती तो कहती अच्छा आज फिर कोई नया काम करा होगा बहुत डाट पड़ती थी लेकिन हमें इस तरह के जुमले सुनते सुनते कोई असर नही होता था हा एक बात ज़रूर थी हिंदी के शिक्षक कुन्ज बिहारी जो की (KB Sir) के नाम से मश्हूर थे उनकी कॉपी लाना कभी नही भूलते कभी उन्होंने हमें डाटा भी नही लेकिन उनमे एक अलग बात थी मुझे मश्हूर करने में सबसे बड़ा किरदार उनका ही है शायरी का शौक तो था और लिखता भी था लेकिन कभी सुनाना पसंद नही करता था ,कभी मेरे अल्फाज़ो को सुनते तो मुझे बताते और एक बार स्कूल में कवी सम्मेलन कराया था मुझे जबदस्ती स्टेज पर पंहुचा दिया वही दिन तो था  मेरी "माँ" कविता पर तालयो की गड़गड़ाहट ने मेरे अंदर एक नयी आग लगा दी थी, जो आज तक जलरही है इस कवि सम्मेलन में प्रथम स्थान मिला था, आज भी वो लम्हा मेरी आँखो में ताज़ा है यह बात सच है हमें जो भी मिलता है कुछ नयी पहचान दे जाता है मेरी आँखो में आसु इस बात की गवाही दे रहे है उन लोगो की शिक्षा का उनकी दुआओ का असर आज भी ज़िंदा है

"एक अरसा हुआ आप सब के बिना
गुज़र रहा है ये सफ़र कितना तन्हा"

●●●सफ़र अभी जारी रहेगा ●●●
किताब :एक अधूरा सफ़र
तीसरा पड़ाव :सफ़र-ए-सेक्रेड हार्ट्स
लेखक : साइम इसरार

Saturday, May 21, 2016

सफ़र-ए-सेक्रेड हार्ट्स

मेरी किताब: एक अधूरा सफ़र
★★★ सफ़र-ए-सेक्रेड हार्ट्स ★★★
माँ और छोटे भाई बरेली आगये थे, पापा अपने काम में मसरूफ़ रहते तो यह सोचकर मेरा दाखिला बरेली के सेक्रेड हार्ट्स स्कूल में ही करादिया , छोटा सा स्कूल देखकर बहुत रोया था लेकिन स्कूल तो जाना ही था पहले काफी दिक्कत का सामना हुआ , लेकिन धीरे धीरे ज़िन्दगी पटरी पर आरही थी कुछ नए दोस्त भी बन गए थे , बहुत जल्दी तो नही लेकिन मेरा दिल लगने लगा था अब दोस्तों के साथ अच्छा वक़्त गुज़ारते थे , मुझे आज भी याद है मेरा दोस्त काज़िम मेरे साथ ही बैठता था गुस्से का बेहद तेज़ और दिखने में बेहद सीधा लगता शुरूरात के कुछ दिन उसी के साथ गुज़रे थे फिर हलके हलके दोस्तों की फहरिस्त लम्बी होतीगयी , पीछे की सीट पर बैठे चुप चाप अपना काम कररहे एक लड़के से बात हुई जिसका नाम शाकिर था वो आज तक मेरे साथ है कुछ दिन में बहुत अच्छा और खुशनुमा माहोल होगया था , हम स्कूल में 6 -7 दोस्तों का ग्रुप मशहूर होने लगा था जिसमे नावेद , अनिल, असीम , जितेंद्र थे , यू समहज लीजिए जैसे कही भी जाते तो सब साथ में ही जाते थे , किसी को दिक्कत होती तो सब साथ में खड़े होजाते नावेद जो मेरा बहुत खास दोस्त था कई बार मेरे लिये छोटी छोटी बातो पर लड़जाता था , एक अलग पहचान होगयी थी हमारी स्कूल के चोकीदार से लेकर डिरेक्टर तक नाम से जानती थी लेकिन हमारी दोस्ती कुछ लोगो की आँखो में खटक रही थी , कुछ लोग हमसे बड़े परशान रहते और कुछ बहुत खुश लेकिन हम इस सब से बेपरवाह जिंदगी को जीने में मस्त थे कैसे भी हालात हो कुछ भी हो हम सब हमेशा एक रहते थे हमारे ग्रुप में अनिल और जितेंद्र हमारे दोस्त थे लेकिन वो हमारे भाई जैसा थे मुझे कुछ होता तो वो बवाल करदेते कुछ लोग हमारी एकता की मिसाल दिया करते थे और कुछ लोगो को परशानी थी क्यों की हम लोगो ने गलत काम करने वाले , गुंडा गिर्दी करने वालो के नाक में दम करदिया था किसी की भी लड़ाई होती तो लोग हमारे पास आते हमे उनके मसले सुलझाने में मज़ा आता था , कुछ टीचर्स हमारी दोस्ती से बेहद परेशान थे , किसी बात को लेकर नए नए कंप्यूटर के मास्टर गुलशन सर से कहा सुनी होगयी थी उन्होंने हमें बहुत हड़काया लेकिन हम उनकी इज़्ज़त करते थे हमने उनसे अकेले में बात की तो वो हमारी बात भी समहज गए उन्होंने हमें समझाया भी , लेकिन स्कूल के अंदर एक शक्स थी ज़ेबा मैमै जिनसे हम बहुत डरते थे इतना डर हमें किसी से नही लगता था कभी उन्हे सामने से आता देखलेते तो रास्ता बदल देते थे वो हमसे बहुत प्यार करती थी हम भी उनकी कोई बात नही टालते थे अक्सर टीचर्स हमारी शिकायत ज़ेबा मैम से ही करते क्यों की उन्हे पता था यह किसी की नही सुनने वाले है ज़ेबा मैम ने हमें कभी नही मारा था पर हम सब लोग उनकी दिल से इज़्ज़त करते

●●●सफ़र अभी जारी रहेगा ●●●
किताब :एक अधूरा सफ़र
तीसरा पड़ाव :सफ़र-ए-सेक्रेड हार्ट्स
लेखक : साइम इसरार

Thursday, May 12, 2016

सफ़रनामा ( हॉस्टिल ) पेज 3


किताब "एक अधूरा सफ़र"
★★★ सफ़रनामा ( हॉस्टिल )★★★
पेज 3

3 साल बाद कुछ वक़्त और हालात को देखते हुए मेरी माँ के हमदर्द और अज़ीज़ मामा और मेरे नाना जो मेरे वालिद के एक अच्छे दोस्त भी थे, मेरे पापा उनकी हर बात मानते थे जो अब इस दुन्या को अलविदा कहचुके है( मरहूम अख़लाक़ अहमद) ने मेरे बेहतर मुस्तक़बिल के लिए पापा को समझाया और मेरा दाखिला अलीगढ़ के एक नामी स्कूल जो जो बड़ा मशहूर था उसमे करा दिया गया , इसमें सबसे ज़्यादा मेहनत और भागादौड़ी मेरे अम्मी के माममूजात भाई और मेरे मामा जो उस वक़्त अलीगढ़ विश्वविद्यालय में तालीम हासिल कररहे थे उन्होंने की थी, मेरा पूरा ख्याल रखते उस वक़्त मेरे माँ और बाप का फ़र्ज़ वही अदा कररहे थे ,मुझे कुछ भी दिक्कत होती तो फ़ौरन भागे चले आते किसी भी चीज़ की ज़रूरत होती तो जब इतवार के दिन जो की बच्चों से मिलने के लिये होता था उस दिन ध्यान से लाते ,कभी किसी चीज़ की कमी नही होने दी ।।
मुझे एक बात आज भी याद है मेरे वार्डन ने किसी बात पर मेरी पिटाई करदी थी उसी दिन मामा मुझसे मिलने आये थे मै उन्हें देखकर अचानक रोने लगा उनके पूछने पर मैने पूरा वाक़या बयान किया उस वक़्त मेरी गलती नही थी तो मामा को भी गुस्सा आना लाज़मी था वह से उठकर सीधे वार्डन से मिले और उस बात पर बड़ी नोक झोक होगयी थी ।।
मुझे अक्सर किसी चीज़ की ज़रूरत महसूस होती तो अपने पापा से ना कहकर मामा को बताता था वो मुझसे बड़ा प्यार करते थे जब छुट्टिया होती तो मुझे आपने साथ ही घर लेकर आते थे , 2 साल बाद उनके दिल्ली चले जाने पर बड़ा अकेला महसूस करने लगा था मुझे अक्सर माँ बाप की याद आती अब इतवार आने पर कोई ख़ुशी महसूस नही होती थी क्यों की मुझे पता था कोई मिलने नही आने वाला , गेट के पास लॉन में बैठा और बच्चों को उनके घर वालो से रिश्तेदारो से मिलते देखता तो आसू आजाते ,मुझे पता था मुझसे मिलने आज कोई नही आएगा फिर भी न जाने क्यों अकेला बैठा इन्तिज़ार करता रहता कभी गेट की तरफ देखता तो कभी उन बच्चों की तरफ जो अपने लोगो के साथ खुश थे पर मई वही अकेला तनहा उस दिन ना खाने की भूक न ही कैंटीन बस कुछ पेड़ो के बीच अकेला तनहा एक बच्चा , सेहत और मसरूफ़यात के बीच कभी महीनो में पापा मिलने आजाते थे तो बहुत खुश होता मानो जैसे ईद होगयी हो ढेर सारी बाते होती और पापा का प्यार एक अलग अहसास  लेकिन मामा जल्दी जल्दी मिलजाते थे तो अकेलापन कम खलता था लेकिन उस बचपने में कुछ खास नही कर सका मै उनकी उम्मीदों पर खरा नही उतर सका यह मेरी बदकिस्मती रही

Wednesday, May 11, 2016

कोई खास

मेरी किताब "एक अधूरा सफ़र"

★★★★कोई खास★★★★


"कोई खास" एक कहानी है जो ज़िन्दगी में भुत खास ते जिन्हे हमपर यकीन और हमे उनपर यकीन था ,इस कहानी की शुरूरत इस शेर से अछि क्या होसकती थी

"कच्चे बखिए की तरह रिश्ते उधड़ जाते हैं
हर नए मोड़ पर कुछ लोग बिछड़ जाते हैं"

बात उन दिनों की है जब मै कक्षा11वी में था कुछ लोग जो मेरी ज़िन्दगी में नये जुड़ रहे थे ,और कुछ बिछड़ चुके थे अगर सबका नाम लिखदु तो जगह कम होगी।।
एक शक्स जिसका मिजाज़ बड़ा शांत और सरल , नूरानी चहरा और दाढ़ी बोलने का अंदाज़ एसा जिसपर कोई भी फ़िदा होजाये , मेरे दिल के बेहद करीब सब के चाहिता , क़ाबलियत से भरपुरब बिना किताब हात में लिये सब कुछ पढा देते मै बात कररहा हू बरेली के मशुर एकाउंटेंसी के मास्टर " सर शनवाज़ खान " की जितनी हमारी उम्र थी उससे भी ज़्यादा उनका तजुरबा था, अपने दिल की सुनते कभी किसी के दवाब में काम नही किया पूरी ईमानदारी से अपना फ़र्ज़ निभाते थे, बच्चे उनपर फ़िदा थे उनसे लगाव इतना था के वो जब जाने को थे तो मै अपने आसु नही रोक सका बहुत रोया था पता नही दिल से इज़्ज़त एक अलग ही चीज़ थे चंद दिनों में हमपर एसा जादू करा के कोई भी उनकी जगह नही लेपया पूरा साल मनो किताब कुछ न पड़कर भी सब कुछ सिखागये थे कभी किताब नही खोली , खुद अपने सवाल देते खुद समझते 10 बार पूछने पर भी कभी गुस्सा नही आया ,
●● सफ़र जारी रहेगा●●
किताब एक अधूरा सफ़र 

पड़ाव 3
साइम इसरार

Tuesday, May 10, 2016

इत्तेहाद और संघर्ष का वक़्त आ गया है, अब चुप नही बैठा जायेगा

अन्याय के विरूद्ध लिखने और फैसला सुनाने जैसा लिखने में अंतर होता है जनाब।।

जो कल तक गला फाड़ फाड़ कर उन बे कसूर  लड़के को मास्टर माइंड आतंकवादी बता रहे थे सबूत न मिलने के कारण रिहा होने पर उनकी सांप सुंघ गई क्या अब चुप क्यों है?
कोई उनसे सवाल क्यों नही करता आखिर क्या कसूर है ?
हिन्दुस्तान मे कोई आंतकवाद नही है, अगर कही आंतकवाद है तो वह पत्रकारिता की कलम से बना आंतकवाद है, उन इलेक्ट्रोनिक मीडिया के कैमरों मे आंतकवाद है जिसमें बेगुनाहों को अपने राजनीतिक फायदों और चैनलों की टीआरपी बढ़ाने के नाम पर सक्रिय आंतकवादी दिखाकर पेश किया जा रहा है।क्योंकि लोकतंत्र का चौथा स्तंभ आज बिकाऊ है, गुलाम है राजनीति का, "इसलिए राजनीतिक गलियारों मे अपनी कलम की बोली लगाकर यह पत्रकारिता आज दलाल बन चुकी है"।
ये हमारे लिए एक गम्भीर मुद्दा है इसपे गहन विचार करना होगा
जब तक फिरका फिरका खेलेंगे तब तक ऐसे ही होगा ,अब हम सब को एक होना होगा फिरकापरस्ती का खेल अब ख़त्म करो सोचो कही हमारी नस्ले बर्बाद न होजाय
जब अल्लाह एक है रसूल एक है काबा एक है तो हम एक क्यों नही

मुझे एक शेर याद आता है
उन्हें यह फ़िक्र है हरदम, नयी तर्ज-ए-जफा क्या है
हमें यह शौक है कि देखें सितम की इन्तहा क्या है

https://m.facebook.com/ekadhoorasafar/


इत्तेहाद और संघर्ष का वक़्त आ गया है, अब चुप नही बैठा जायेगा

अन्याय के विरूद्ध लिखने और फैसला सुनाने जैसा लिखने में अंतर होता है जनाब।।

जो कल तक गला फाड़ फाड़ कर उन बे कसूर  लड़के को मास्टर माइंड आतंकवादी बता रहे थे सबूत न मिलने के कारण रिहा होने पर उनकी सांप सुंघ गई क्या अब चुप क्यों है?
कोई उनसे सवाल क्यों नही करता आखिर क्या कसूर है ?
हिन्दुस्तान मे कोई आंतकवाद नही है, अगर कही आंतकवाद है तो वह पत्रकारिता की कलम से बना आंतकवाद है, उन इलेक्ट्रोनिक मीडिया के कैमरों मे आंतकवाद है जिसमें बेगुनाहों को अपने राजनीतिक फायदों और चैनलों की टीआरपी बढ़ाने के नाम पर सक्रिय आंतकवादी दिखाकर पेश किया जा रहा है।क्योंकि लोकतंत्र का चौथा स्तंभ आज बिकाऊ है, गुलाम है राजनीति का, "इसलिए राजनीतिक गलियारों मे अपनी कलम की बोली लगाकर यह पत्रकारिता आज दलाल बन चुकी है"।
ये हमारे लिए एक गम्भीर मुद्दा है इसपे गहन विचार करना होगा
जब तक फिरका फिरका खेलेंगे तब तक ऐसे ही होगा ,अब हम सब को एक होना होगा फिरकापरस्ती का खेल अब ख़त्म करो सोचो कही हमारी नस्ले बर्बाद न होजाय
जब अल्लाह एक है रसूल एक है काबा एक है तो हम एक क्यों नही

मुझे एक शेर याद आता है
उन्हें यह फ़िक्र है हरदम, नयी तर्ज-ए-जफा क्या है
हमें यह शौक है कि देखें सितम की इन्तहा क्या है

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Sunday, May 8, 2016

मेरी माँ

ठण्ड के मौसम की गरमायी सी है माँ
मनो एक रज़ाई सी है माँ,
बरसात की बूंदो सी छाई है माँ,
नये फूल की खुशबु सी आई है माँ ।।

सूरज की रौशनाई सी है माँ
चांदनी रात की चमकई सी है माँ,

आखो में सपने लिये कहा सोपाई है माँ
न जाने कितने दुःख उठाई है माँ,
एक असर दार दुआ सी है माँ
मनो जन्नत की परछाई सी है माँ।।

मेरी माँ

ठण्ड के मौसम की गरमायी सी है माँ
मनो एक रज़ाई सी है माँ,
बरसात की बूंदो सी छाई है माँ,
नये फूल की खुशबु सी आई है माँ ।।

Tuesday, May 3, 2016

सफ़रनामा ( हॉस्टिल ) पेज 2


किताब "एक अधूरा सफ़र"
★★★ सफ़रनामा ( हॉस्टिल )★★★
पेज 2
हॉस्टिल में अब ज़िन्दगी की नयी शुरूरात थी , शुरूरत में थोडा वक़्त ज़रूर लगा लेकिन हलके हलके सब कुछ पटरी पर आने लगा था, दिन तो किसी तरहा स्कूल मे कट जाता ,क्यों की मेरे फुफिज़ात भाई और बहन भी उसी स्कूल में थे वो मेरा ख्याल रखते आखिर मै उनका भाई था वो भी छोटा , फूफी अपने बच्चों के साथ एक टिफिन मेरा भी भेजती थी घर का खाना हॉस्टिल में नसीब वालो को ही मिलता है फ़िलहाल मै इस मामले में खुशनसीब था ,मेरी बहन जो 10वी में थी हमारा काफी ख्याल रखती थी फ़िक़्र के साथ खाना खिलाती उसने अपना फ़र्ज़ बखूबी निभाया था, स्कूल से छुट्टी के बाद शाम को डे बोर्डिंग मे कुछ कुछ वक़्त गुज़रते थे अब मेरे नये दोस्त भी मिलगये थे , राकेश मेरा एक दोस्त जिसे प्यार मे हम टोबो या रोबोट कहते थे, आज वो भारतीय जल सेना का हिस्सा है मेरे साथ बैठता था 3 घंटे का वक़्त हम बातो बातो में कैसे गुज़र देते पता ही नही लगता था उन दिनों की सबसे खूबसूरत यादो में से थे वो दिन जिस दिन खण्डेवाल सर जो की इंग्लिश पढ़ते थे  उनका क्लास होता तो मज़ा आजाता था , बड़ा मज़ा लेते थे शायद उन्हें ज़िन्दगी में इतना परेशान किसी ने नही किया होगा जितना की मैने करा था , वो अक्सर मुझे अलग बैठाते स्कूल में भी यही हाल था क्लास के अन्दर आते ही मुझे बिलकुल अलग बैठाते एक अलग कुर्सी थी लाल रंग की उनके कुछ किससे तो आज भी हँसने पर मजबूर करदेते है ,कुछ अल्फ़ाज़ आज भी कानो में गूंजते है मुझसे अक्सर कहते थे तुम नही सुधरोगे तुम सबसे शैतान बच्चे हो एक डाइलोग तो आज भी नही भुला हू "You foolish boy In a one slap you will fly in Air with your Chair " और मुझे हास्सी आजाती तो अक्सर मारा करते , एक बार वो मुझे मार रहे थे के अचानक डंडा मेरी नाक पर लागग्या और खुन निकलने लगा तो अपने रुमाल से खून रोकने की कोशिश की लेकिन चोट गहरी थी उस कांड से शोर मचग्य लेकिन शायद उस जैसा काबिल शख्स आज तक नही मिला एक अलग ही बन्द था , कॉपी चेक करते तो कभी अपने साइन भी नही करते हमेशा "सीन " लिख देते सबसे अलग पहचान थी उनकी लेकिन हम अपनी नादानी में कभी कद्र नही करते हमेशा मज़ाक में ही लेते थे , अभी कुछ साल पहले मुलाकात हुई थी अचानक देखते ही पहचान लिया था आज याद करता हु तो कभी हँसी आती है तो कभी आखे नाम होजाती है
एक अलग नाम "खण्डेलवाल" एक अलग पहचान थी सबसे अलग तनहा रहने की आदत थी
●●● हॉस्टिल का सफ़र अभी जारी रहेगा ●●●

किताब "एक अधूरा सफ़र"
★★★ सफ़रनामा ( हॉस्टिल )★★★

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