Monday, April 11, 2016

"एक अधूरा सफ़र"

  ★★★ एक शरारती बच्चा ★★★★
बचपन से थोडा शैतान था और बच्चों से थोडा अलग कभी किसी लड़के की शर्ट फाड़देता तो कभी किसीकी पैंट उतार देता बचपन मे नानिहल वालो का काफी चाहिता था तो मांमा 3 साल की उम्र मे बरेली ले आये थे कुछ दिन वहा के संत वंदिस स्कूल में पढ़ा लेकिन सही माइनो में शुरूरत की शिक्षा अपने पैतृक गाँव करघेना के पास अमरीया के इंग्लिश स्कूल से की शायद कक्षा 1 की बात होगी सुबह सुबह के वक़्त अपनी तायाज़ात बड़ी बहने जो सगी तो नही थी सच बताऊ तो सगी से कम भी नही थी उन्होंने कभी यह महसूस नही होने दिया की में अकेला हू  उनके साथ एक शैतान लड़का जिसकी पीठ पर एक स्कूल का बस्ता और हाथो में मोमफलि लेकर स्कूल जाता कुछ खता और कुछ नहर में फेक देता कुछ यादे धुंदली होगयी है लेकिन आज भी याद है हर वो लम्हा , हर वो बचपन की शरारत  लेकिन उस समय  स्कूल न जाने का रोज़ बहाना बनाता और पापा की डाट के सामने मजबूरन स्कूल को जाता दिन भर पढ़ई तो शायद ही कुछ करता था दिन भर लोगो को परशान करना और स्कूल की छुट्टी का इन्तिज़ार करना जैसे ही छुट्टी का घंटा बजता सबसे पहले अपनी बहनो के पास जाता कभी वो डाटती तो कभी कान पकड़ती और कभी नादान बातो पर हस्ती शायद वो मुझसे उतना ही प्यार करती जितना मे शैतानी करता था पूरे दिन की हर बात एक साँस में अपनी बहनो को बताता खुश होता और कभी रोता तो कभी हस्ता हुआ घर जाता रास्ते का सफ़र 5 km का था पता ही नही लगता था घोंडा कितनी तेज़ चलता था या मेरी शरारत में वक़्त गुज़र जाता होगा मेरा दोस्त सलमान जो बचपन से काफी वक़्त साथ रहा है आज विदेश में है लेकिन उस से इतना लड़ता कभी वो मुझे मरता कभी मै उसे लेकिन सबसे ज़्यादा खुश भी उसी के साथ होता था शायद उस वक़्त फिकरों से अनजान था शाम को हम सब ताया के घर इख्ठा होते  और मस्ती करते उसके बाद जब घर जाते तो कुछ शरारतो की शिकायत भी साथ जाती थी मेरी माँ जो मुझे प्यार तो बहुत करती पर उतना ही डाँटती भी थी पापा से बहुत डरता था लेकिन पापा 7 बजे के बाद आते थे उसे पहले ही चुपचाप खाना खेलते थे और चीकू के पेड़ के नीचे आगंन में चटाई बिछा कर मिटटी के तेल से जलते हुये लैंप की रौशनी मे अपनी किताबो को लेकर बैठ जाते कुछ देर तो मन लगाकर पढ़ते और पापा के पास कोई आजाता तो उनकी बाते सुनने में मस्त हो जाते खुली ख़िताब हमारा मुह तकती रहती कभी लैंप पर रबर घिसते कभी कॉपी पर कुछ लिखते यही सिलसिला चलता रहता रात को 10 बजते ही हमें सोने को कहा जाता तो हम ख़ुशी से पागल होजाते एसा लगता जेल से ज़मानत हुयी हो पर अम्मी के बराबर में सोते हमारी माँ हमारे लिये सपने बुनती की बेटा यह बनेगा बेटा वो बनेगा हमे लगता पता नही हमे पढ़ाकर इन्हें क्या मिलेगा क्यों यह हमपर ज़ुल्म कररहे है हमारे माँ बाप ,लेकिन शायद हम से ज़्यादा फ़िक्र हमारे अम्मी पापा को थी पापा दिन रात मेहनत करते और माँ दिन भर घर का काम करती हम तो बस मस्ती कररहे थे ●●●●●●●

लिखना अभी बाकी है

मेरी किताब "एक अधूरी सफ़र "
के लिये दुआ की गुज़ारिश
लेखक: साइम इसरार

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