कुछ वादा ए वफ़ा याद है
कुछ भुलादिये हमने
कुछ ज़िन्दगी के भूले किस्से
सबको सुनादिये हमने
तुम्हारी यादो को आज
तक साथ रखा है लेकिन
आज उन खातो को
खाक में मिला दिये हमने
तुम्हारी यह ज़िद तुम्हे
तनहा न करदे
बस इस ख्याल ने आज
फिर झुक दिया हमने
लोग साथ छोड़ देते हैं बीच सफ़र मैं जब यादें खुशनुमा हमसफ़र बनके साथ निभाती है "एक अधूरा सफ़र"
कुछ वादा ए वफ़ा याद है
कुछ भुलादिये हमने
कुछ ज़िन्दगी के भूले किस्से
सबको सुनादिये हमने
तुम्हारी यादो को आज
तक साथ रखा है लेकिन
आज उन खातो को
खाक में मिला दिये हमने
तुम्हारी यह ज़िद तुम्हे
तनहा न करदे
बस इस ख्याल ने आज
फिर झुक दिया हमने
कैसा यह माहोल बना है
अब नफरत का बाज़ारो मे
भोली जनता भूकी मर रही है
अब नयी सदी के अंधकारों में
कभी गाय का मुद्दा है
कभी हिंदुत्व का लेते सहारा
जनता भूकी मर रही है
कैसा यह विकास का नारा
माहोल देश का बिगाड रखा है
कुछ सियासत के आकाओ ने
साइम कई शहर जला डाले है
इन बड़ बोले नेताओ ने
कैसी नफरत पैदा करदी
भाई भाई को लड़वाने मे
खून बहरहा है सड़को पर
इस नयी सदी के चुनावो मे
शिक्षा ही एक मात्र समाधान है
@साइम इसरार के कलम से ####
आज कल देश का माहोल बिगड़ने की कोशिश क्यों होरही है क्या आपने कभी सोचा है आज जो माहोल है उसका ज़िमेदार कौन है? अगर सच पूछो तो
इस सब के ज़िमेदार हम लोग खुद है क्यों की जब तक हम यह नही मानले की शिक्षा ही एक मात्र हल है तब तक इस समाज का कुछ नही होसकता जब तक हम लड़के और लड़की को एक बराबर नही मानेगें तब तक अपने बच्चों का भविष्य नही सम्हालेंग तब तक यही हॉल रहनेवाला है आखिर हमारी सोच में फर्क क्यों है लड़के को उच्च शिक्षा और लड़की को सिर्फ 12 वी तक ही क्या इतनी छोटी है हमारी मानसिकता हमे अपनी सोच को बदलना ही होगा बच्चों को शिक्षा का यह मतलब नही की स्कूल से ही काम चल जायेगा बच्चों को समाज में उठना बैठना , लोगो से बात करना और तमीज तहज़ीब पर सोचना होगा हम अपनी पुरानी संस्कृति से दूर जारहे है क्या होगा आने वली नस्लो का क्यों की आज तक जो भी कुर्सी पर बैठा है उसने समाज को गुमरहा ही करा है अगर सब पढ़ लिख जाओगे तो इन नेताओ के पीछे कोन घूमेगा कोन इनकी जय जय कार करेगा और इनका सबसे ज़रूरी मुद्दा भी ख़त्म होजायेगा सबसे बड़ी परशानी इन्हे ही होगी क्यों की हिन्दू मुस्लिम राजनीती ख़त्म होजायेगी और यह बेचारे बेरोज़गार होजाएंगे शिक्षा ही एक मात्र विकल्प है अगर हम चाहते है हमारे बच्चे इस दहशत की जिंदिगी से महफूज़ रहे तो सोचो कही बहुत देर ना होजाये और आखिर
कब तक यू ही धर्म के नाम पर हम लड़ते रहेंगे कब तक सड़को पर खून बहता रहेगा कभी दादरी मे अख़लाक़ कभी फरीदाबाद मे दलित मासुम बच्चों को ज़िंदा जला दिया जाता है आखिर कब तक ये सरकार मुआबजा देकर गरीबो का मजाक बनाती रहेगी कोई भी घटना हो सरकार केवल मुआबजा देकर अपना पल्ला झाड़ देती है क्या ये मुआबजा ही उन पीड़ित लोगो के लिए काफी है क्या सरकारे इन घटनाओ के लिये जिम्मेदार नहीं है
बुझाकर बेवजह दीपक बहोत खुश आंधियाँ होगी,
मगर फिर आग के शोलों से रौशन बस्तियाँ होगी।
@साइम इसरार के कलम से