Tuesday, October 31, 2017

आज कल देश का माहोल बिगड़ने की कोशिश क्यों होरही है

आज कल देश का माहोल बिगड़ने की कोशिश क्यों होरही है क्या आपने कभी सोचा है आज जो माहोल है उसका ज़िमेदार कौन है?इस सब के ज़िमेदार हम लोग खुद है क्यों की

जब तक हम यह नही मानले की शिक्षा ही एक मात्र हल है तब त
कब तक यू ही धर्म के नाम पर हम लड़ते रहेंगे कब तक सड़को पर खून बहता रहेगा कभी दादरी मे अख़लाक़ कभी फरीदाबाद मे दलित मासुम बच्चों को ज़िंदा जला दिया जाता है आखिर कब तक ये सरकार मुआबजा देकर गरीबो का मजाक बनाती रहेगी कोई भी घटना हो सरकार केवल मुआबजा देकर अपना पल्ला झाड़ देती है क्या ये मुआबजा ही उन पीड़ित लोगो के लिए काफी है क्या सरकारे इन घटनाओ के लिये जिम्मेदार नहीं है

क इस समाज का कुछ नही होसकता जब तक हम अपने बच्चों का भविष्य नही सम्हालेंगे तब तक यही हॉल रहनेवाला है क्यों की आज तक जो भी कुर्सी पर बैठा है उसने समाज को गुमरहा ही करा है अगर सब पढ़ लिख जाओगे तो इन नेताओ के पीछे कोन घूमेगा कोन इनकी जय जय कार करेगा और इनका सबसे ज़रूरी मुद्दा भी ख़त्म होजायेगा  सबसे बड़ी परशानी इन्हे ही होगी क्यों की हिन्दू मुस्लिम राजनीती ख़त्म होजायेगी और यह बेचारे बेरोज़गार होजाएंगे शिक्षा ही एक मात्र विकल्प है अगर हम चाहते है हमारे बच्चे इस दहशत की जिंदिगी से महफूज़ रहे तो सोचो कही बहुत देर ना होजाये और आखिर

बुझाकर बेवजह दीपक बहोत खुश आंधियाँ होगी,
मगर फिर आग के शोलों से रौशन बस्तियाँ होगी।
@साइम इसरार के कलम से

Monday, July 24, 2017

( पेज 1 ) कुछ यादे ओर जिंगल बेल्स

( भाग 5 पेज 1 )
कुछ यादे ओर जिंगल बेल्स
जिंदगी में कुछ और लम्हे जुड़ने वाले थे कुछ नए लोगों का साथ लिखा था इसलिए सफर जिंगल बेल स्कूल की तरफ बढ़ गया था
पहले दिन तो ऐसा लगा कि यहां एक-एक पल गुजारना मुश्किल हो जाएगा लेकिन जैसे जैसे वक्त बीतता गया नए लोगों का नाम जिंदगी में जुड़ता चला गया ।
सब कुछ बड़ा शांत शांत सा लग रहा था बराबर की सीट पर बैठे एक सरदार जी से मुलाकात हुई उन्होंने अपना नाम मिस्टर गिल बताया, मुझे कुछ समझता नहीं आया बस दोबारा उनसे यूं ही पूछ लिया असली नाम क्या है हंसते हुए बोले हमें सनप्रीत गिल और मिस्टर गिल कहते हैं कुछ देर बात करने के बाद उनसे दोस्ती सी हो गई काफी मजा आ रहा था उनके साथ कभी कभी हम भी टूटी-फूटी पंजाबी बोलिया करते थे और वह हमारी बातों पर बहुत हंसते आज सनप्रीत  एक मशहूर फोटोग्राफर हैं उनके साथ वक्त का पता ही नहीं चलता था कब दिन निकल गया और घर जाने का वक्त आ गया
हमारे ही बराबर में एक सीधे साधे दिखने वाले लड़के ने हमें खाना खाने के लिए कहा जान पहचान तो नहीं थी लेकिन ऐसा लगा जैसे कोई अपना हो बिना कुछ सोचे समझे उसके साथ बैठ गए और खाना खाते जाते बातें करते रहते हैं नाम पूछने पर अपना नाम पार्थ मल्होत्रा बताया तभी एक मोटा सा लड़का वहां पर आकर बैठ गया और हम लोगों से कहने लगा मैं भी नया आया हूं मुझे रोहित कहते हैं हमने साथ में उसको भी खाना खाने के लिए कहा बस यूं ही शुरुआत में हम तीन दोस्त रोज मिलकर खाना खाते और मस्ती करते थे मैं अक्सर उन लोगों से कहा करता था यहां से जाने के बाद बहुत याद आएगी तब वह लोग कहते कोई बात नहीं दोस्ती तो लाइफ टाइम ही रहेगी
कुछ ही दिन में दोस्ती इतनी गहरी हो गई थी बिना एक दूसरे के खाना नहीं खाते छुट्टी भी करना होती थी तो पहले ही बात कर लिया करते थे कि कल नहीं आना है वक्त बीतता गया और साथी और बढ़ते चले गए।।
एक दिन अचानक हमारी मुलाकात सैयद आमिर अली से हुई वैसे तो वह हमारे टीचर भी थे रोज क्लास लेने के लिए आते लेकिन उस दिन उनसे बहुत बातें हुई तो ऐसा लगा जैसे पहली बार मिले हो लेकिन रिश्ता बड़ा पुराना सा लगता बातों में उर्दू लहजा कभी-कभी शायरी की जुबान से बहुत कुछ कह जाते जो दिल को छू जाती थी हमें बहुत पढ़ाया अक्सर जब कभी स्कूल जाने में परेशानी हुआ करती थी तब उनकी स्कूटी पर स्कूल जाया करता था वह अपने घर बुला लेते बिना नाश्ता करें साथ नहीं लेकर जाते थे उनके घर से एक अलग ही रिश्ता हो गया था जो लफ़्ज़ों में बयान नहीं किया जा सकता है, आज भी सब वैसा ही है साल बीते हैं बातें नहीं

● ●आगे भी जारी रहेगा●●

Saturday, March 25, 2017

भूका पेट

●●●@साइम इसरार के कलम से●●●
*एक भूका पेट*

जिसे चैन से रोटी मिल जाए उसे भूखे पेट की तड़प का अंदाज़ा नहीं होता
शहर की बड़ी-बड़ी कारें रोड पर फर्राटा भरती हुई मानो ऐसा लग रहा था जैसे वक्त की कीमत लगा दी हो हर आदमी जल्दी में था ,रोड के किनारे फुटपाथ पर कुछ जिंदगियां रेंगती हुई चल रही थी जो बिल्कुल अलग नजारा था रोड के विपरीत।
एक तरफ जिंदगी रेस लगा रही थी और दूसरी तरफ कुछ जिंदगियां घिसटती हुई अपना वक्त बिता रही थी फर्क ज्यादा नहीं था दोनों ही इंसान थे और दोनों ही कुछ पाना चाहते थे फुटपाथ पर रहने वाली जिंदगी अपना पेट भरने के लिए रेंग रही थी और दूसरी ओर अपनी ख्वाइशों को पूरा करने की जिद में रेस हो रही थी।
नजारा उसी शहर का था रेलवे स्टेशन के पास कुछ झोपड़ियां भी मिली और वहां भूखे पेट की तड़प भी महसूस हो रही थी, तन पर फटे हुए कपड़े और नंगे पैर चलते मासूम बच्चे एहसास दिला रहे थे कि जिंदगी हमारी भी है, बस फर्क इतना है कोई मखमली कालीन पर चलता है और कोई पत्थरों पर किसी के पैर गुलाब जैसे कोमल होते हैं और किसी के पैरों से खून टपकता है ज्यादा फर्क तो नहीं रंग दोनों के पैरों का गुलाबी होता है।
बराबर से गुजरती हुई एक ट्रेन ने झकझोर देने वाली एक तस्वीर दिखा दी अचानक ट्रेन की खिड़की में से किसी ने बचा हुआ खाना फेंका था शायद उसका पेट भरने के बाद बच गया होगा लेकिन जिनका खाली था वह भाग कर उस खाने की तरफ उम्मीद के साथ के शायद अब तो यह भूख मिट जाए आज की रोटी का इंतजाम हो जाए चार पांच बच्चे और एक रोटी उस पर लगी हुई थोड़ी सी सब्जी यह बता रही थी पेट की तड़प क्या होती है और गरीबी किसे कहते हैं बच्चों से मुलाकात करने का इससे अच्छा मौका क्या होता जो असली जिंदगी का पाठ दे रहे थे सवाल पूछने पर जवाब भी कुछ अलग ही था एक बच्चे ने नम आंखों से अपनी जिंदगी चार लफ़्ज़ों में ऐसे बयान कर दी मानव वहां पर खड़ी हुई इंसानियत पलभर में नीलाम हो गई ।
उसकी आंख से आंख मिलाने की हिम्मत जुटाना भी मुश्किल था समझ नहीं आया उसने जवाब दिया है या सवाल किया है लेकिन जो भी था सच था वह शब्द हमेशा याद रहेंगे
*बाबूजी भूख लगी थी*
मैंने सोचा शायद यह हिंदू होंगे फर्क लगा तो सोचा यह तो मुस्लिम लगते हैं नाम पूछने पर पता लगा एक रमेश दूसरा आसिफ तीसरा जॉनी चौथा सुखदेव
मैंने तो सोचा था यहां सब मिलकर एक रोटी कैसे खा रहे हैं कितनी मोहब्बत है अपने हिस्से की भी कोई रोटी अपने दोस्त अपने साथी को दे देता है इसलिए धर्म जात पात से ऊपर उठकर अपनी भूकं और प्याज की लड़ाई लड़ रहे हैं इन्हें धर्म से क्या मतलब इन्हें जात से क्या मतलब इन को भूख लगी थी उनकी जरूरत एक है' उनकी चाहत एक
वहां से निकलने के बाद शहर की एक बड़ी कॉलोनी पहुंच गए दरवाजे पर लगी हुई बड़ी-बड़ी प्लेटे नाम और पोस्ट बता रही थी कोई बीटेक,  कोई MBA ,कोई पीएचडी देखने से तो अच्छा लगा लेकिन सामने से आ रे एक भिखारी ने दरवाजा खटखटाया तो अंदर से जवाब मिला यह हिंदू का घर है मुसलमान आगे रहते हैं और मुसलमान के यहां पहुंचा उसने कहा हिंदू पीछे रहते हैं उसका एक ही सवाल था साहब *मैं भूखा हूं मुझे खाना दे दो* लेकिन न हिंदू ने दिया ना मुसलमान ने दिया शायद जितने शिक्षित थे उतने ही खोखले उनके संस्कार थे जो एक भिखारी को एक भूखे को खाना ना दे सके
सबके घरों में लंबी-लंबी कारें खड़ी थी बड़े-बड़े बंगले थे बस एक ही चीज की कमी दिखी वहां इंसान नहीं थे यह दृश्य देखकर इंसानियत को शर्मसार हो ही गई और अमीरी नीलाम हो गई मैं वहां खड़ा था जहां इंसानियत दम तोड़ रही थी नजरों में परायापन जेब में पैसे और हर इंसान अपनी जिंदगी जीने में मस्त यह बता रहा था कि
*हम तो जिंदा हैं मरे हुए जमीर के साथ , और तुम भी चले जाओ इस तस्वीर के साथ*

Friday, March 17, 2017

#FIR #mandatory #registration

Supreme Court in Lalita Kumari v Government of Uttar Pradesh issued the following guidelines -
i) Registration of FIR is mandatory under Section 154 of the Code, if the information discloses commission of a cognizable offence and no preliminary inquiry is permissible in such a situation.
ii) If the information received does not disclose a cognizable offence but indicates the necessity for an inquiry, a preliminary inquiry may be conducted only to ascertain whether cognizable offence is disclosed or not.
iii) If the inquiry discloses the commission of a cognizable offence, the FIR must be registered. In cases where preliminary inquiry ends in closing the complaint, a copy of the entry of such closure must be supplied to the first informant forthwith and not later than one week. It must disclose reasons in brief for closing the complaint and not proceeding further.
iv) The police officer cannot avoid his duty of registering offence if cognizable offence is disclosed. Action must be taken against erring officers who do not register the FIR if information received by him discloses a cognizable offence.
v) The scope of preliminary inquiry is not to verify the veracity or otherwise of the information received but only to ascertain whether the information reveals any cognizable offence.
vi) As to what type and in which cases preliminary inquiry is to be conducted will depend on the facts and circumstances of each case. The category of cases in which preliminary inquiry may be made are as under:
a) Matrimonial disputes/ family disputes
b) Commercial offences
c) Medical negligence cases
d) Corruption cases
e) Cases where there is abnormal delay/laches in initiating criminal prosecution, for example, over 3 months delay in reporting the matter without satisfactorily explaining the reasons for delay.
The aforesaid are only illustrations and not exhaustive of all conditions which may warrant preliminary inquiry.
vii) While ensuring and protecting the rights of the accused and the complainant, a preliminary inquiry should be made time bound and in any case it should not exceed 7 days. The fact of such delay and the causes of it must be reflected in the General Diary entry.
viii) Since the General Diary/Station Diary/Daily Diary is the record of all information received in a police station, we direct that all information relating to cognizable offences, whether resulting in registration of FIR or leading to an inquiry, must be mandatorily and meticulously reflected in the said Diary and the decision to conduct a preliminary inquiry must also be reflected, as mentioned above
#FIR #mandatory #registration

Thursday, March 16, 2017

चुनाव परिणाम का स्वागत होना चाहिए

●●@साइम इसरार के क़लम से●●
*इससे पहले कि नफरत का बीज डाला जाए*
*हवाओं से कह दो मोहब्बत का तराना गाया जाए*
कहावत तो सुनी होगी
खिसियानी बिल्ली खंबा नोचे यह कहावत आज के वक्त में बिल्कुल सच साबित हो रही है जब से चुनाव परिणाम आया है उस दिन से लगातार इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM)पर सवाल खड़े  करे जा रहे हैं यह सवाल क्यों है आपने इस पर सोचा
अगर इसी तरह पूर्ण बहुमत मायावती या अखिलेश को मिली होती तो कोई सवाल नहीं खड़ा करता लेकिन आज भारतीय जनता पार्टी *(BJP)* को जन समर्थन मिला है उस पर बार-बार सवाल खड़ा करना लोकतंत्र को ठेंगा दिखाने के बराबर है इससे पहले भी समाजवादी सरकार को बहुमत मिली थी
मायावती को बहुमत मिली थी
दिल्ली में केजरीवाल को बहुमत मिली थी
कांग्रेस को बहुमत मिली
तो किसी ने सवाल क्यों नहीं उठाए जो जनादेश मिला उसका स्वागत होना चाहिए और आने वाली सरकार का स्वागत करना चाहिए कुछ दिनों से सोशल मीडिया पर लगातार अल्पसंख्यकों को डराने की कोशिश हो रही है कि बीजेपी आ गई बीजेपी आ गई बीजेपी आ गई
अगर इतिहास उठा कर देखा जाए तो आप को इस बात का अंदाजा हो जाएगा कि आज तक कांग्रेस ने मुसलमान को सिर्फ वोट बैंक समझा है और इससे ज्यादा कोई हैसियत नहीं समझी लालबत्तियां दे देने से समस्याएं हल नहीं हो जाती लेकिन केंद्र में सत्ता पर काबिज भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने अभी तक तो ऐसा कोई काम नहीं किया जो मुस्लिम विरोधी हो या मुसलमानों को पीछे करता हो फिर क्यों बार-बार ब्रम्ह फैलाने की कोशिश हो रही है सुलझे हुए दिमाग से यह सोचना होगा कि जो हमारे लिए काम करेगा हम उसे खुले दिल से समर्थन करेंगे पहचान काम से होनी चाहिए बातों से नहीं अगर हमारे लिए कोई अच्छा काम करता है तो हमें उसका स्वागत करना चाहिए और उस का साथ देना चाहिए 
चुनाव परिणाम घोषित होने के बाद गोरखपुर के मशहूर सांसद योगी आदित्यनाथ ने अपने पहले पत्रकार वार्ता में कहां कि *"यह सरकार सबके लिए काम करेगी यह सरकार विकास के लिए काम करेगी इस सरकार में किसी के भी साथ भेदभाव नहीं होगा"*
*पत्रकार ने पूछा क्या अल्पसंख्यकों को डरने की जरूरत है उस पर जवाब दिया इस सरकार में मुसलमानों को डरने की कोई जरूरत नहीं हां जो गलत लोग हैं उन्हें जरूर डरना होगा*
हमें इस बात की तारीफ क्यों नहीं करना चाहिए जब हम किसी की आलोचना करना चाहते हैं तो उसकी तारीफ करना क्यों नहीं जानते तुम्हारा दिल इतना बड़ा क्यों नहीं हो सकता इस बात पर आपने कभी नहीं सोचा होगा नजर का फर्क होता है क्या देखना है आपको अच्छा है या बुरा अच्छी नजर से देखोगे अच्छा दिखेगा बुरी नजर से तो बुरा ही दिखेगा यह तो आपको सोचना है अच्छा देखना है या बुरा देखना हैं।

*ना चाहते हुए भी आज मैंने यह लेख उन लोगों के लिए लिखा है जो लगातार ब्रम्ह फैलाने की कोशिश कर रहा हूं*

Sunday, February 26, 2017

धर्म कोई भी हो इंसान बनने के लिए शिक्षा की जरूरत है

●●●●साइम इसरार के कलम से ●●●●●
मुसलमानों की सियासत करने से हमें कुछ नहीं मिलने वाला बहुत मुत्तहिद हो कर देख लिया यूपी में जितना मुत्तहिद हुए उतना ही साम्प्रदायिकता का वोट बैंक मुत्तहिद हो गया मुझे तो ऐसा लगता है कि हमें सेक्युलरिज्म का बोझ अपने कंधों पर उठाने की आदत डाल लेनी चाहिए ।
जब तक तालीम में मजबूत नहीं है तब तक इस बारे में सोचना निहायती बेवकूफी होगी क्योंकि जब कभी भी हमने किसी को अपना कयादत माना है ,तब तब हमारे साथ धोखा और छल-कपट हुई है आदमी ताकत के नशे में इतना चूर हो जाता है कौम के असली मसाइल तो पीछे छूट जाते हैं और बचा-कूचा हमारे बिकाऊ रहनुमा जिन्हें हम निर्दलीय चुनते हैं वह पूरा कर देते हैं वक्त और हालात की नजाकत को देखते हुए हमें जज्बात से ना फैसला लेकर दिमाग से फैसला लेना होगा हमें, अपनी कौम को तालीम में आगे ले जाकर खड़ा करना होगा जहां से हम एक नई इबारत लिख सकें कोई भी कौम उस वक्त तक कामयाब नहीं होती है जब तक सिर्फ अपने बारे में सोचे अगर हम अपने बारे में सोचते हैं तो सोचना हमें उन गरीब लोगों के बारे में भी है उन बेबस लोगों के बारे में भी है उन अनपढ़ लोगों के बारे में भी सोचना है जो किसी और धर्म से ताल्लुक रखते हैं ताकि हम सब का विकास हो सके और शिक्षा किसी एक धर्म के लिए नहीं है हर धर्म में कहा गया है कि तालीम हासिल करो इसीलिए  तो हर धर्म की अलग-अलग किताबे हैं वह पढ़ कर इंसानियत सीखने के बारे में है ना कि धर्म की ठेकेदारी करने के लिए।

जब तक हम तालीम याफ्ता नहीं हो जाती तब तक राजनीति अपनी हद तक की करना बेहतर होगा क्योंकि इस सियासत के चक्कर में हमारे असली मसाइल पीछे छूट जाते हैं और हम अपनी छोटी मोटी समस्याओं पर वक्त बर्बाद करना शुरू कर देते हैं हमारी बुनियादी समस्याएं तभी हल हो सकती हैं जब हर घर से बच्चा अच्छी तालीम हासिल करें बेहतर यह होगा कि जो लोग सियासती स्टेज से मेहनत करते हैं वह लोग कौम को तालीम देने में मदद करें जितना वक्त हमारे रहनुमा सियासत में बर्बाद करते हैं उतना वक्त अगर हम शिक्षा के क्षेत्र में लगाएं तो हमारे हालात में बदलाव आ सकता है पढ़ लिख कर जब हम अपनी मेहनत के बलबूते अपनी ताकत बनाने की कोशिश करेंगे तो उससे हमारी बुनियादी समस्याएं हल हो सकती हैं इसके लिए हमें अभी से आगाज करना होगा ताकि हम ब्यूरोक्रेसी पर कब्जा कर सकें ब्यूरोक्रेसी सफर का वह स्टेशन है जहां से हमारा सफर लंबा तो होगा लेकिन कामयाबी जरूर मिलेगी मैं तो यही सोचता हूं।
हो सकता है आपकी सोच मुझसे मुख्तलिफ हो सकती है और आप मुझसे बेहतर जानते हो सकते है
आज के लिए इतना ही है आगे आप सोचिए और मुझे भी सोचने का मौका दीजिए वैसे तो लोग यह कहते हैं सोचने से कुछ नहीं बदलता करने से बदलता है

Sunday, February 12, 2017

यूपी का चुनावी चक्रव्यू

●●●@ साइम इसरार के कलम से ●●●
●●● यूपी का चुनावी चक्रव्यू ●●●प्रदेश का विधानसभा चुनाव हमेशा से एक बड़ा मसला रहा है उसकी वजह यह है राजनीतिक पंडित कहते हैं दिल्ली के सिंहासन का रास्ता लखनऊ होकर निकलता है इसका मतलब यह की जो लखनऊ में सरकार बनाएगा बिना उसकी मदद के दिल्ली में सरकार बनाना असंभव है।
जैसा कि पिछले लोकसभा चुनाव में देखने को मिला अल्पसंख्यक वोटरों के एक बड़े बिखराव से सांप्रदायिक ताकतें मजबूत हुई और केंद्र में बीजेपी की सरकार बनी कुछ इस से ही मिलता जुलता अब यूपी चुनाव के विधानसभा चुनाव में दिख रहा है अल्पसंख्यक वोटर का बिखराव बीजेपी को मदद कर रहा है वजह बड़ी साफ है ,समाजवादी कांग्रेस गठबंधन और  बसपा के उम्मीदवार दोनों ही जगह मुस्लिम मतदाताओं के वोट बिखराव से सांप्रदायिक ताकतें मजबूत हो रही हैं जैसे कि लोकसभा चुनाव में देखने को मिला था ,
कई लोकसभा सीटें ऐसी हारी जहां बसपा और समाजवादी आपस में लड़ती रह गई और भारतीय जनता पार्टी का कमल खिल गया सबसे बड़ा उदाहरण मुस्लिम बहुल क्षेत्र संभल मैं शफीकुर्रहमान वर्क साहब की मात्र 5000 वोटों से हार और मुरादाबाद की सीट पर भी यही हुआ बचा कुचा वोट पीस पार्टी के मुस्लिम रहनुमाओं ने काट लिए रामपुर में भी यही देखने को मिला था समाजवादी उम्मीदवार मजबूत थे लेकिन उनके वोट कांग्रेस और  बसपा ने  बीजेपी का कमल खिलवा दिया।
जब राजनैतिक ज्ञानियों ने गणित लगाया तो पता यह चला कि बहुजन समाज पार्टी का अपना दलित वोट सीधे बीजेपी को ट्रांसफर हो गया और अल्पसंख्यक वोटर साफ शब्दों में कहा जा है तो मुस्लिम वोटर बीएसपी के और समाजवादी और कांग्रेस तीनों में आपस में इतनी बुरी तरह बट गया जिससे कि बीजेपी को बहुत बड़ा फायदा हुआ ,
परिवार की 5 सीटों पर समाजवादी पार्टी तो किसी तरह अपनी इज्जत बचाने में कामयाब रही  लेकिन मायावती की बहुजन समाज पार्टी उत्तर प्रदेश में एक भी लोकसभा सीट नहीं जीत सकी , उधर कांग्रेस ने भी दो सीटें जीती ,कांग्रेस और सपा में वोट बंटवारे को लेकर कई सीटे हरी थी अब दोनों के गठबंधन से देखना दिलचस्प होगा के यूपी को यह साथ कितना पसंद आता है और कितना अखिलेश जी का #काम बोलता है
अब तक की चुनावी गणित देखा जाए तो कुछ चुनावी सर्वे को छोड़कर सब कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के गठबंधन को बहुमत देते देख रहे हैं और इनको सीधी टक्कर भारतीय जनता पार्टी दे रही है अब अगर सरकार बनाने के लिए मायावती की पार्टी बीएसपी और बीजेपी मिल जाते हैं तो यूपी में मायावती की सरकार बन जाएगी लेकिन अभी तो फिलहाल अखिलेश यादव और राहुल गांधी का यूपी को साथ पसंद आ रहा है और समाजवादी कांग्रेस गठबंधन सबसे मजबूत दिखाई देता है वही अगर बीएसपी मजबूर कर देती है तो सीधे फायदा बीजेपी को पहुंचेगा फिर सत्ता पर काबिज समाजवादी पार्टी की जगह हाथी का परचम लहरा सकता है ,
मायावती जहां गुंडाराज को अपना सबसे बड़ा मुद्दा मानती हैं ,वही अखिलेश विकास को सबसे बड़ा मुद्दा मानते हैं और भारतीय जनता पार्टी मोदी के नाम पर चुनाव लड़ रही है अब देखना यह है  यूपी का वोटर किसके सर पर ताज रखता है, एक बात और बड़ी महत्वपूर्ण है के लोकसभा चुनावों की बात अलग थी जब मोदी जी को देश का प्रधानमंत्री बनाने के लिए जनता ने ठान ली थी लेकिन यह उत्तर प्रदेश का चुनाव उससे बिलकुल अलग है ,यहां के मुद्दे भी दूसरे हैं और चेहरे भी अलग जिन की धमक राजनीति में बहुत पुरानी है एक तरफ तो दो युवा चेहरे एक साथ खड़े हैं जो विकास की बात करते हैं एक तरफ मायावती जी खड़ी हैं जो गुंडा राज की बात करती हैं और एक तरफ भारतीय जनता पार्टी है मोदी जी के चेहरे के नाम पर वोट मांग रही है देखना दिलचस्प होगा किसकी बात से जनता संतुष्ट होती है और किसके सर यह ताज जाता है क्योंकि लोकतंत्र में सबसे बड़ी ताकत जनता की है और 5 साल बाद जनता के दरबार में इन बड़े बड़े नेताओं को आना ही होता है वरना जनता की सुनता कौन है ।
चुनाव के बाद ना कोई पूछने वाला है और ना कुछ बताने वाला तभी किसी शायर ने यह कहा है ।
"गरीबों की प्लेट में पुलाव आ गया लगता है फिर यूपी में चुनाव आ गया"