Thursday, May 12, 2016

सफ़रनामा ( हॉस्टिल ) पेज 3


किताब "एक अधूरा सफ़र"
★★★ सफ़रनामा ( हॉस्टिल )★★★
पेज 3

3 साल बाद कुछ वक़्त और हालात को देखते हुए मेरी माँ के हमदर्द और अज़ीज़ मामा और मेरे नाना जो मेरे वालिद के एक अच्छे दोस्त भी थे, मेरे पापा उनकी हर बात मानते थे जो अब इस दुन्या को अलविदा कहचुके है( मरहूम अख़लाक़ अहमद) ने मेरे बेहतर मुस्तक़बिल के लिए पापा को समझाया और मेरा दाखिला अलीगढ़ के एक नामी स्कूल जो जो बड़ा मशहूर था उसमे करा दिया गया , इसमें सबसे ज़्यादा मेहनत और भागादौड़ी मेरे अम्मी के माममूजात भाई और मेरे मामा जो उस वक़्त अलीगढ़ विश्वविद्यालय में तालीम हासिल कररहे थे उन्होंने की थी, मेरा पूरा ख्याल रखते उस वक़्त मेरे माँ और बाप का फ़र्ज़ वही अदा कररहे थे ,मुझे कुछ भी दिक्कत होती तो फ़ौरन भागे चले आते किसी भी चीज़ की ज़रूरत होती तो जब इतवार के दिन जो की बच्चों से मिलने के लिये होता था उस दिन ध्यान से लाते ,कभी किसी चीज़ की कमी नही होने दी ।।
मुझे एक बात आज भी याद है मेरे वार्डन ने किसी बात पर मेरी पिटाई करदी थी उसी दिन मामा मुझसे मिलने आये थे मै उन्हें देखकर अचानक रोने लगा उनके पूछने पर मैने पूरा वाक़या बयान किया उस वक़्त मेरी गलती नही थी तो मामा को भी गुस्सा आना लाज़मी था वह से उठकर सीधे वार्डन से मिले और उस बात पर बड़ी नोक झोक होगयी थी ।।
मुझे अक्सर किसी चीज़ की ज़रूरत महसूस होती तो अपने पापा से ना कहकर मामा को बताता था वो मुझसे बड़ा प्यार करते थे जब छुट्टिया होती तो मुझे आपने साथ ही घर लेकर आते थे , 2 साल बाद उनके दिल्ली चले जाने पर बड़ा अकेला महसूस करने लगा था मुझे अक्सर माँ बाप की याद आती अब इतवार आने पर कोई ख़ुशी महसूस नही होती थी क्यों की मुझे पता था कोई मिलने नही आने वाला , गेट के पास लॉन में बैठा और बच्चों को उनके घर वालो से रिश्तेदारो से मिलते देखता तो आसू आजाते ,मुझे पता था मुझसे मिलने आज कोई नही आएगा फिर भी न जाने क्यों अकेला बैठा इन्तिज़ार करता रहता कभी गेट की तरफ देखता तो कभी उन बच्चों की तरफ जो अपने लोगो के साथ खुश थे पर मई वही अकेला तनहा उस दिन ना खाने की भूक न ही कैंटीन बस कुछ पेड़ो के बीच अकेला तनहा एक बच्चा , सेहत और मसरूफ़यात के बीच कभी महीनो में पापा मिलने आजाते थे तो बहुत खुश होता मानो जैसे ईद होगयी हो ढेर सारी बाते होती और पापा का प्यार एक अलग अहसास  लेकिन मामा जल्दी जल्दी मिलजाते थे तो अकेलापन कम खलता था लेकिन उस बचपने में कुछ खास नही कर सका मै उनकी उम्मीदों पर खरा नही उतर सका यह मेरी बदकिस्मती रही

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