Tuesday, July 26, 2016

मेरी किताब: एक अधूरा सफ़र ★★★ सफ़र-ए-सेक्रेड हार्ट्स ★★★

मेरी किताब: एक अधूरा सफ़र
★★★ सफ़र-ए-सेक्रेड हार्ट्स ★★★
पेज 3
वैसे तो मेरी उम्र ज्यादा नहीं थी लेकिन अच्छा खासा समझदार हो गया था कुछ टीचरों से ज्यादा लगाव था और कुछ दोस्तों से भी
जिंदगी की तेज रफ्तार से कदम मिलाने की कोशिश में बहुत कुछ पीछे छूटता जा रहा था , मानो एक बेलगाम का घोड़ा बस दौड़ता ही जाता हो ,ना किसी चीज की फिक्र बस एक सपना जीत का लिये हुए।।
जैसे-जैसे उम्र बढ़ती जा रही थी मंजिल का सफर और तेजी से बढ़ता जा रहा था वह वक्त नजदीक आ रहा था जब हमें अपनी जिम्मेदारी समझनी थी मेरी बातों से ही आप समझ गए होंगे कि मैं शायद जिंदगी के उस पड़ाव की बात कर रहा हूं जहां पर मंजिल का पहला कदम रखा जाता है ,बात दसवीं कक्षा की है कुछ समय तो हम सब दोस्त साथ रहे लेकिन कुछ दिन बाद हम सब को अलग कर दिया गया, हमारे सेक्शन बदल दिए गए सब बिछड़ गए थे लेकिन इतनी दूर भी नहीं थे कि मिलना सके बस कुछ इसी तरह हर दिन कुछ नया होता हमारी अंग्रेजी की शिक्षिका आदरणीय सीमा फरहा जो हम से बेहद प्यार करती थी हमसे कुछ ज्यादा ही परेशान थी ,शायद वह उनकी मोहब्बत ही थी वह यही चाहती थी यह बच्चे एक साथ रहेंगे तो पढ़ नहीं पाएंगे, इन्हें अलग अलग कर दिया जाए उन्होंने हमारे हक में अच्छा ही किया  और उससे हमें फायदा भी हुआ हम लोग पढ़ाई में अपना मन लगाने लगे थे  हमारी क्लास के अंदर बातें करने की आदत कम हो गई थी उनके कहने से हमें अलग तो कर दिया गया उसके बाद काफी कुछ ऐसा हुआ जो की बयां करना सही नहीं समझता हूं जब हम कुछ गलत नहीं करते थे तब भी हमारा नाम बीच में आहीजाता था ।।
इससे हमें अफसोस होता था आखिर हमारा ही नाम क्यों आता है जब कि हम कुछ भी नहीं करते कुछ टीचर तो हमारी यह बात जानते भी थे  हम कुछ नहीं करते हैं, लेकिन इस से कोई फायदा नहीं था हम अपने विरोधियों के निशाने पर आ गए थे मुझे आज भी ध्यान है मेरी कक्षा अध्यापक जिनका नाम अंजली था अंजलि मैंम ने हमारी काफी मदद की मैं उनके ही क्लास में था वह अक्सर हमें घंटों समझाया करती इत्तेफाक से वह भी हिंदी की ही अध्यापिका थी, उन्होंने हमारी बड़ी मदद की हर मुसीबत में हमारा साथ दिया वह पहली शिक्षिका थी जिन्होंने हमारे मां-बाप से कभी शिकायत नहीं की क्योंकि वह जानती थी हम थोड़े शैतान तो है पर गलत नहीं है क्योंकि हमने कुछ ऐसा गलत किया भी नहीं था, लेकिन ना जाने क्यों पता नहीं स्कूलों में ऐसी कौन सी राजनीति  होती है अक्सर कुछ अध्यापक कुछ बच्चों के इतना खिलाफ हो जाते हैं जिनको समझ पाना ही आसान नही होता है और ना ही समझाना वह पहली नजर में ही बच्चे से ऐसा व्यवहार कर देते हैं कि जब तक वह बच्चा स्कूल में रहे हमेशा वह  विरोधी ही रहेगा, ऐसा ही कुछ हमारे साथ हुआ हमारे एक अध्यापक जिनका स्कूल में अच्छा खासा रुतवा जो कि हमारे नाम से ही नफरत करते थे शायद उन्होंने कभी हमें समझने की कोशिश ही नहीं कि मैं बता नहीं सकता हूं उनकी विचारधारा किस तरह की होगी एक बार मेरा मोबाइल स्कूल में पकड़ गया था मैं मानता हूं कि वह मेरी गलती थी लेकिन उसको किसी सच्ची तरह भी पेश किया जाता जा सकता था मेरे कहने का मतलब यह है  कि जो बात सच थी वह बताई भी जा सकती थी लेकिन उस शक्स ने मेरी शिकायत आदरणीय राधा सिंह से की और ना जाने क्या-क्या बातें उन्हें बता दी जो कि सरासर गलत थी और उस उम्र में हम उस तरीके की बातें सोच भी नहीं सकते लेकिन इस सब का क्या फायदा वह जब भी मेरी किताब पढ़ेंगे तो अपने आप को समझ जाएंगे मैं किसकी बात कर रहा हूं ,नाम लेना उचित नहीं समझता हूं बस इतना ही कहूंगा की स्कूल मैनेजमेंट बच्चे का भी पक्ष जानने की कोशिश करा करें शायद हम गलत हो सकते हैं लेकिन इतने भी गलत नहीं होंगे कि हमसे कभी हमारा पक्षी नहीं पूछा गया
" यह मेरी अपनी राय है मैं किसी के ऊपर भी उंगली नहीं उठाता क्योंकि मैं अपने आप को इस काबिल नहीं समझता हूं कि मैं उन तक उंगली उठा सकूं हो सकता है उन्होंने हमारी अच्छाई के लिए ही इतना किया हो लेकिन झूठ बोल कर किसी की अच्छाई कैसे हो सकती है ,किसी के साथ हमने कभी गलत नहीं सोचा फिलहाल बात को यहीं रोका जाए तो बेहतर होगा एक अधूरा सफर का सफर अभी जारी रहेगा"

●●●सफ़र अभी जारी रहेगा ●●●
किताब :एक अधूरा सफ़र
तीसरा पड़ाव :सफ़र-ए-सेक्रेड हार्ट्स
लेखक : साइम इसरार