Monday, March 2, 2015

मेरी मॉ MAYRE MAA

वाह रे जमाने तेरी हद हो गई, बीवी के
आगे माँ रद्द हो गई !
बड़ी मेहनत से जिसने पाला, आज
वो मोहताज हो गई !
और कल की छोकरी, तेरी  सरताज हो गई !
बीवी हमदर्द और माँ सरदर्द हो गई !
वाह रे जमाने तेरी हद हो गई.!!

पेट पर सुलाने वाली, पैरों में सो रही !
बीवी के लिए लिम्का,
माँ पानी को रो रही !
सुनता नहीं कोई, वो आवाज देते सो गई !
वाह रे जमाने तेरी हद हो गई.!!

माँ मॉजती बर्तन, वो सजती संवरती है !
अभी निपटी ना बुढ़िया तू , उस पर बरसती है !
अरे दुनिया को आई मौत,
तेरी कहाँ गुम हो गई !
वाह रे जमाने तेरी हद हो गई .!!

अरे जिसकी कोख में पला, अब
उसकी छाया बुरी लगती,
बैठ होण्डा पे महबूबा, कन्धे पर हाथ
जो रखती,
वो यादें अतीत की, वो मोहब्बतें माँ की, सब रद्द हो गई !
वाह रे जमाने तेरी हद हो गई .!!

बेबस हुई माँ अब, दिए टुकड़ो पर पलती है,
अतीत को याद कर,
तेरा प्यार पाने को मचलती है !
अरे मुसीबत जिसने उठाई,
वो खुद मुसीबत हो गई !
वाह  रे जमाने तेरी हद हो गई .!!

TANHA HU


देख ली न तूने मेरे आँसुओं की ताक़त

कल रात मेरी आँखें नम थीं,
आज तेरा सारा शहर भीगा है

Sunday, March 1, 2015

कुछ यादे ओर कुछ बातेँ केसे बोलूँ बता दो मुझको

वो रातेँ बहुत याद आती हे दादी की बातेँ बहुत याद आती हे दादा कि वो प्यारी डांट जाकर सोना उनके पास .
वो गाँव मेँ बीते लमहे कुछ यादोँ के संग कुछ प्यारी बातोँ के संग
वो आम के बाग मेँ जून की गर्मी
नहर के पानी की ठंड मानो जैसे गर्मी हारी साथी अपने सारे रंग ..
दोस्ती यारी भाई बहन सब मिलकर करते थे मस्ती दूर के रिश्ते लगते हैँ अपने कितनी प्यारी थी वो बस्ती
याद बहुत आती हे व गांव के दिन की राते एक अलग ही दुनिया लगती थी  वो अपने सारे रिश्ते नाते
दरिया दरिया बस्ती बस्ती पेड़ की ठंडी छाँव मेँ सरकारी नल के पानी की मिठास आज भी याद आती हे अपने गाव की जिंदगी ज़हन को परेशान कर जाती हे

मेरा गॉव मे कितनी मुश्किल है दिल की कहानी लिखना जैसे पानी से पानी पर पानी लिखना

मेरा गॉव