Friday, November 25, 2016

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय का एक छात्र लापता है

साइम इसरार के कलम से●●●●●
बहुत दिन से सुनते आ रहे हैं जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय का एक छात्र लापता है कुछ दीवाने उसके लिए आवाज उठा रहे हैं और एक माह से इन सर्द रातों में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के एडमिन ब्लॉक के सामने बैठी है शायद इस इंतजार में वो बच्चा कहीं से आ जाए लेकिन मुझे अफसोस तब होता है जब न्यूज़ चैनलों पर खबरें तो बहुत आती है और नजीब की बात कोई नहीं करता शायद इसलिए कि वह उनका बच्चा नहीं है, या उसके गुम हो जाने से किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर परिवार से मिलने के लिए समय तक नहीं जुटा पा रहे हैं और वही आरोपी छात्र खुली हवा में सांस ले रहे हैं क्योंकि उनके ऊपर किसी बड़े नेता का हाथ है, हो सकता है उनसे पूछताछ की गई तो वोट का एक बड़ा तबका खिसक जाएगा ,लेकिन यह कौनसा इंसाफ है
उसकी मां रो रही है और सारा सरकारी तंत्र चुप है शायद इसलिए कि वह नजीब है एक छोटी सी जगह बदायूं जो बरेली के पास है आज उसे पूरा देश जानने लगा है कि वह नजीब का शहर है ,मैं बरेली वालों से भी पूछना चाहता हूं और उन सामाजिक संस्थाओं से पूछना चाहता हूं जो बड़े-बड़े वादे तो करते हैं लेकिन इस तरह के मसलों पर आकर चुप हो जाते हैं मैं उन तमाम संस्थाओं के उन समाजसेवी जो कि सफ़ेद कुर्ते के अंदर छुपे हुए एक नेता भी हैं उन लोगों से भी पूछता हूं कि वह नजीब के लिए क्या कर रहे हैं ,नजीब के लिए आवाज उठाने के लिए किसी के पास वक्त नहीं है क्योंकि नजीब का मुद्दा किसी पैसे से जुड़ा हुआ मुद्दा नहीं है इस से किसी को वोट नहीं मिलने वाले , गुनाहगार सिर्फ वह तीन नहीं है जिन्होंने नजीब को मारा गुनाहगार हम सब हैं जो आज तक चुप बैठे हैं उस बेगुनाह के लिए आवाज तक नहीं उठा सके यह कैसी इंसानियत है
लानत है ऐसे नेताओं और फ़र्ज़ी समाज सेवियो  पर जो जनता की आवाज होने का वादा तो करते हैं  लेकिन मुश्किल घड़ी में  कमरों के अंदर  छुप कर बैठ जाते हैं
हां मैं गर्व से कह सकता हूं  मैं नजीब का भाई हूं  मैं उसके लिए आवाज़ उठाऊंगा  मैंने उसके लिए आवाज उठाई भी है  और मैं उसके लिए आवाज उठाता भी रहूंगा  क्योंकि मैं एक छात्र हूं  इसलिए मैं उसका भाई हूं वह हिंदू है या मुसलमान है मुझे इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता  कल रोहित था  तब भी मैंने उसकी  आवाज से आवाज मिलाई थी  आज अजीब है तो भी आवाज उठा रहा हूं , कल कोई और भी हो सकता है आज नजीब है तो कल मैं भी हो सकता हूं उसके बाद तुम्हारा नंबर आना है शांत रहो चुप रहो अपने नंबर का इंतजार करो 
क्या पता कब कौन किस पर इल्जाम लगा दे  कब कौन देशद्रोही हो जाए यहां पर सर्टिफिकेट तो फ्री में मिलने लगे हैं  अपनी बारी का इंतजार करें  तुम्हारा क्या जाता है किसी मां का बेटा चला गया किसी का भाई गया किसी की सारी उम्र की कमाई चली गई तुम चुप हो क्योंकि वह तुम्हारा कोई नहीं था मेरा तो भाई है मैं तो बोलूंगा तुम्हें बुरा लगे तो चुप रहो मैं तो बोलूंगा वह मेरा भाई है वह बरेली का है वह नजीब है वह रोहित भी हो सकता था
हिंदू मुसलमान होना एक अलग बात है वह इंसान है और इंसान के लिए इंसान को खड़ा होना है यह एक अहम बात है तुम जानो तुम्हारा काम जाने मैं अपना फर्ज तो पूरा कर रहा हूं आगे तुम जानो आगे तुम सोचो क्या नजीब तुम्हारा कोई था , नजीब से तुम्हारा कोई रिश्ता है उस मां के आंसुओं के साथ तुम्हारा कौन सा जुड़ाव है उस मां के आंसुओं के साथ तुम्हारा कौन सा रिश्ता है क्या उस मां का चेहरा तुम्हारी मां की तरह नहीं है हो सके तो आज रात सोने से पहले सोच लेना कि वह नजीब था वह नजीब है वह रोहिता था ,कल मैं भी हो सकता हूं कल तुम भी हो सकता हूं अपनी बारी का इंतजार करते रहिए शांत रहिए ज्यादा बोलोगे तो राष्ट्रविरोधी हो जाओगे फिलहाल तो मार्केट में नोट बदलने की चिंता सब को सता रही है ,मैं तो चला तुम अपना सोचो आज रात यह जरूर सोचना नजीब कौन है ?उसकी मां कौन है? उसके मां के आंसू तुमसे क्या कह रहे हैं ? तुम्हारा जमीन तुमसे क्या चाहता है ?तुम्हारे अंदर का इंसान कहां चला गया है? हो सके तो मेरी बात को 2 मिनट जरुर सोचना फिलहाल मुझे तो लिखने की आदत है नजीब का मसला हो या रोहित का मसला  मुझे तो लिखना ही है

Wednesday, November 16, 2016

नोट और वोट

साइम इसरार के कलम से@@@@
यह नारा तो आपने काफी समय पहले सुन लिया होगा कि मेरा देश बदल रहा है लेकिन यह नारा सच होता हुआ मुझे आज दिख रहा है, जब लंबी लंबी कतारों में खड़े हिंदुस्तानी भारतीय प्रधानमंत्री को कोस रहे हैं मेरे लिए यह अनुभव बहुत ही खराब है आखिर जनता भी क्या करें अब मोदी जी ने देश की मुद्रा को बदलने का निर्णय लिया था तो समय सही चुन लेते एक नजर उन गरीबों की तरफ भी देख लिया होता जिनके पास मात्र दो तीन हजार रुपए जमा पूंजी है ,और शायद दिन में रिक्शा चलाकर अपना खर्चा चलाते हैं अब वह अपने दो तीन हजार रुपए को बदले लंबी लंबी लाइनों में इंतजार करें या फिर रिक्शा चला कर घर वालों को खाना खिलाएं यह निर्णय लेना उनके लिए एक कठिन विषय है, फिलहाल देश की बैंकों में कभी भी इतनी लंबी लाइन मैंने तो आज तक नहीं देखी हो सकता है आपने देखी हो देश के अंदर मुद्रा की इतनी बड़ी कमी तो मैं पहली बार देख रहा हूं अब कोई मुझसे यह कहने लगे कि मैं मोदी विरोधी हूं मैं बीजेपी का विरोध कर रहा हूं तो वह बेवकूफ होगा क्योंकि वह भी लाइन में लगने वाली स्थिति में ही है मुद्दे की बात करें तो असली हालात उन किसानों से जाकर पूछिए जिनको गेहूं की बुआई के भी पैसे नहीं है जिनके खेतों में मजदूर काम कर रहे हैं और उन्हें शाम को देने के लिए पैसे नहीं है अगर हिंदुस्तान का किसान अपनी फसल बोने में 10 दिन पीछे हो जाता है तो हिंदुस्तान की अर्थ व्यवस्था चरमरा सकती है थोड़ी सी इकनॉमिक्स हमने भी पड़ी है और हमारे भी अध्यापक काबिल ही रहे हैं तो उनका आसर तो आना हमपर लाजमी है,

Najeeb najeeb

साइम इसरार के कलम से●●●●●
बहुत दिन से सुनते आ रहे हैं जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय का एक छात्र लापता है कुछ दीवाने उसके लिए आवाज उठा रहे हैं और एक माह से इन सर्द रातों में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के एडमिन ब्लॉक के सामने बैठी है शायद इस इंतजार में वो बच्चा कहीं से आ जाए लेकिन मुझे अफसोस तब होता है जब न्यूज़ चैनलों पर खबरें तो बहुत आती है और नजीब की बात कोई नहीं करता शायद इसलिए कि वह उनका बच्चा नहीं है, या उसके गुम हो जाने से किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर परिवार से मिलने के लिए समय तक नहीं जुटा पा रहे हैं और वही आरोपी छात्र खुली हवा में सांस ले रहे हैं क्योंकि उनके ऊपर किसी बड़े नेता का हाथ है, हो सकता है उनसे पूछताछ की गई तो वोट का एक बड़ा तबका खिसक जाएगा ,लेकिन यह कौनसा इंसाफ है
उसकी मां रो रही है और सारा सरकारी तंत्र चुप है शायद इसलिए कि वह नजीब है एक छोटी सी जगह बदायूं जो बरेली के पास है आज उसे पूरा देश जानने लगा है कि वह नजीब का शहर है ,मैं बरेली वालों से भी पूछना चाहता हूं और उन सामाजिक संस्थाओं से पूछना चाहता हूं जो बड़े-बड़े वादे तो करते हैं लेकिन इस तरह के मसलों पर आकर चुप हो जाते हैं मैं उन तमाम संस्थाओं के उन समाजसेवी जो कि सफ़ेद कुर्ते के अंदर छुपे हुए एक नेता भी हैं उन लोगों से भी पूछता हूं कि वह नजीब के लिए क्या कर रहे हैं ,नजीब के लिए आवाज उठाने के लिए किसी के पास वक्त नहीं है क्योंकि नजीब का मुद्दा किसी पैसे से जुड़ा हुआ मुद्दा नहीं है इस से किसी को वोट नहीं मिलने वाले , गुनाहगार सिर्फ वह तीन नहीं है जिन्होंने नजीब को मारा गुनाहगार हम सब हैं जो आज तक चुप बैठे हैं उस बेगुनाह के लिए आवाज तक नहीं उठा सके यह कैसी इंसानियत है
लानत है ऐसे नेताओं और फ़र्ज़ी समाज सेवियो  पर जो जनता की आवाज होने का वादा तो करते हैं  लेकिन मुश्किल घड़ी में  कमरों के अंदर  छुप कर बैठ जाते हैं
हां मैं गर्व से कह सकता हूं  मैं नजीब का भाई हूं  मैं उसके लिए आवाज़ उठाऊंगा  मैंने उसके लिए आवाज उठाई भी है  और मैं उसके लिए आवाज उठाता भी रहूंगा  क्योंकि मैं एक छात्र हूं  इसलिए मैं उसका भाई हूं वह हिंदू है या मुसलमान है मुझे इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता  कल रोहित था  तब भी मैंने उसकी  आवाज से आवाज मिलाई थी  आज अजीब है तो भी आवाज उठा रहा हूं , कल कोई और भी हो सकता है आज नजीब है तो कल मैं भी हो सकता हूं उसके बाद तुम्हारा नंबर आना है शांत रहो चुप रहो अपने नंबर का इंतजार करो 
क्या पता कब कौन किस पर इल्जाम लगा दे  कब कौन देशद्रोही हो जाए यहां पर सर्टिफिकेट तो फ्री में मिलने लगे हैं  अपनी बारी का इंतजार करें  तुम्हारा क्या जाता है किसी मां का बेटा चला गया किसी का भाई गया किसी की सारी उम्र की कमाई चली गई तुम चुप हो क्योंकि वह तुम्हारा कोई नहीं था मेरा तो भाई है मैं तो बोलूंगा तुम्हें बुरा लगे तो चुप रहो मैं तो बोलूंगा वह मेरा भाई है वह बरेली का है वह नजीब है वह रोहित भी हो सकता था
हिंदू मुसलमान होना एक अलग बात है वह इंसान है और इंसान के लिए इंसान को खड़ा होना है यह एक अहम बात है तुम जानो तुम्हारा काम जाने मैं अपना फर्ज तो पूरा कर रहा हूं आगे तुम जानो आगे तुम सोचो क्या नजीब तुम्हारा कोई था , नजीब से तुम्हारा कोई रिश्ता है उस मां के आंसुओं के साथ तुम्हारा कौन सा जुड़ाव है उस मां के आंसुओं के साथ तुम्हारा कौन सा रिश्ता है क्या उस मां का चेहरा तुम्हारी मां की तरह नहीं है हो सके तो आज रात सोने से पहले सोच लेना कि वह नजीब था वह नजीब है वह रोहिता था ,कल मैं भी हो सकता हूं कल तुम भी हो सकता हूं अपनी बारी का इंतजार करते रहिए शांत रहिए ज्यादा बोलोगे तो राष्ट्रविरोधी हो जाओगे फिलहाल तो मार्केट में नोट बदलने की चिंता सब को सता रही है ,मैं तो चला तुम अपना सोचो आज रात यह जरूर सोचना नजीब कौन है ?उसकी मां कौन है? उसके मां के आंसू तुमसे क्या कह रहे हैं ? तुम्हारा जमीन तुमसे क्या चाहता है ?तुम्हारे अंदर का इंसान कहां चला गया है? हो सके तो मेरी बात को 2 मिनट जरुर सोचना फिलहाल मुझे तो लिखने की आदत है नजीब का मसला हो या रोहित का मसला  मुझे तो लिखना ही है

Wednesday, November 2, 2016

नजीब कहा है

एक युवा सोच एक युवा लेखक के सवाल जो हर युवा के दिल में है "कहाँ है नजीब"
@साइम इसरार के कलाम से●●●

आज नजीब कोई अंजान शक़्स नही है जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय का छात्र नजीब लापता है और किसी को कोई फर्क नही यह कैसा इंसाफ है साहब एक गाय के गुमजाने पर हंगामा होजाता और एक माँ का बेटा एक छात्र गयाब होजाता है पुलिस और नेता सब चुप
आज #JNU के छात्र के साथ ये नाइंसाफी क्यों?
ये वही जेनयू है जिसने कुछ महीने पहले देश की राजनीती में भूचाल खड़ा करदिया था आज एक माँ के आंसू नहीं पोछे जाते और पुलिस की क्या बात करे भाई आम आदमी पार्टी के विधायक को पकड़ने के लिए पूरी दिल्ली पुलिस लगादी जाती है और पाताल से भी खोजने की बात करते है प्रधानमंत्री जी मुस्लिम के हक़ की बात भी करते है लेकिन नजीब के मसले पर चुप रहते है कैसी नाइंसाफी है, एबीवीपी के कुछ गुंडे नजीब को मारते है गाली देते है जान से मारने की  धमकी देते है "लेकिन सब चुप " यूनिवरसिटी प्रशासन चुप रहता है और नजीब गायब होजाता है
छात्रों को भी कुछ फर्क नही पड़ता कुछ कहते है हमारी यूनिवरसिटी का मामला नही है कोई कहता है नजीब मुस्लिम है
हा है वो मुस्लिम है एक बूढ़ी माँ का बेटा है किसी का भाई है किसी की उम्मीद है लेकिन एक छात्र है वो इंसान भी है कल को नजीब की जगह तुम भी होसकते हो तुम्हारे लिये भी सब चुप रहेंगे तब भी यही कहा जायेगा
तुम्हे फर्क नही पड़ता होगा मुझे फर्क पड़ता है उस बूढ़ी माँ के आंसू मुझसे सवाल कररहे है मुझे मेरी माँ दिखती है कल मेरी माँ भी होसकती है
मै तो आवाज़ उठाऊंगा मै तो नजीब की बात करूँगा मै तो सवाल करूँगा
आखिर कहा है नजीब क्यों की मै इंसान हू मैने रोहित की बात की थी मै नजीब की बात करूँगा मुझे हिन्दू मुस्लिम से क्या लेना है मै छात्र हू और नजीब तो भाई है मेरा
तुम जानो क्या करना है तुम्हारा धर्म तुम्हे मुबारक तुम्हारी नफरते तुम जानो में तो इंसान हू मेरा इस्लाम मिझे ज़ुल्म के खिलाफ आवाज़ उठाने की शिक्षा देता है मोहब्बत की बात जनता  हू इसीलिये नजीब मेरा भाई है मै साइम इसरार हू

लेकिन तुम्हे इस बात से क्या लेना उसकी माँ से क्या लेना नजीब कोई रिश्तेदार थोड़ी है
ज़्यादा कड़वा लिखने लगा हू लकिन क्या करूँ इंसानो की भीड़ में इंसानियत ढूंढ रहा हू
●●● साइम इसरार के कलाम से