Tuesday, December 27, 2016

●● साइम इसरार के कलाम से किसान का दर्द●●●

◆●● साइम इसरार के कलाम से किसान का दर्द●●●

मेरा होश खो गया लहू के उबाल में, कैदी होकर रह गया हूं इसी सवाल में, आत्महत्या की चिता पर देख कर किसान को ,
नींद कैसे आ रही है देश के प्रधान को

हिंदुस्तान में 3 लाख लोग ऐसे हैं जो बिना खाए सो जाते हैं जिन्हें दो वक्त की रोटी नहीं मिलती जिन्हें यह नहीं पता कि रात को क्या खाना है या भूखे ही सो जाना है और 14 हजार किसान पिछले 5 साल में भुखमरी के शिकार होकर आत्महत्या कर लेते हैं यह वही भारत है जिसके कुल 26 लोग दुनिया के एक हजार अमीर लोगों में गिनती आती है जिस देश के 24 करोड़ आबादी गरीबी रेखा से नीचे जिंदगी जीती हो और ना जाने ऐसे कितने नजारे रात को 9:00 बजे के बाद बड़े-बड़े शहरों की सड़कों पर आपको  देखने को मिल जाएंगे जो फुटपाथ पर अखबार बिछाए दो वक्त की रोटी कमाने की जद्दोजहद में इस ठंड के मौसम में आराम की नींद ले रहे हैं आराम इसलिए कह रहा हूं क्योंकि वह इतना थक जाते हैं क्यों नहीं यह भी नहीं पता लगता कि मौसम कितना ठंडा है या गर्म यह सब कोई आम बात नहीं है मेरा सवाल उन लोगों से है जो दो वक्त की भर पेट रोटी खा लेते हैं और उन्हें यह भी नहीं पता कि कितने आज भूखे सोए हैं ऐसा क्यों है आजादी के इतने साल बाद भी आज भी भूखमरी और किसानों की आत्महत्या इस देश में क्या बता रही है
यह हमसे सवाल पूछ रही है कौन से विकास की बातें करते हो पहले दो वक्त की रोटी का इंतजाम कर लो,  आपको यह भी बताता चालू इस देश में जितने भी कलेक्टर हैं सब को एक फंड मिलता है जो भूखमरी राहत कोस्ट के नाम से होता है  उस फंड का क्या इस्तेमाल होता है और इसी तरह न जाने कितने फंड जो विधायको और सांसदों को विकास के नाम पर दिए जाते हैं मेरा सीधा सवाल हमारे नेताओं सांसदों और विधायकों से हैं जोकि अपने अपने इलाकों में भूखमरी रोकने में नाकाम हुए हैं अगर हिंदुस्तान को आजाद हुए सालों के बाद भी हम इस स्थिति पर खड़े हैं उसका जिम्मेदार कौन है और कौन से विकास की बात होती है मुझे तो यही समझ नहीं आता इस देश का अन्नदाता किसान है और किसानों  कर्ज में डूबे हुए है बड़े बड़े उद्योगपतियों का कर्ज माफ हो जाता है और किसान कर्ज के चक्कर में आत्महत्या कर लेता है कभी उस पर ब्याज की मार कभी उस पर मौसम की मार आटा खरीदते हुए कभी नहीं सोचा होगा यह  कहां से आता है और इसके लिए कितनी मेहनत करनी पड़ती है इतना जरूर सोचा होगा आरे अटा 20 रुपए किलो है इतना महंगा हर 5 साल पर नई सरकारें बन जाती हैं नए नेता बदल जाते हैं मगर देश का हाल नहीं बदलता और किसान अपने पुराने दिनों की तरह जिंदगी से लड़ता हुआ दो वक्त की रोटी कमाने में लगा रहता है
अब तो किसान भी कहना गलत होगा क्योंकि कोई किसान यह नहीं चाहता कि उसका बेटा कभी किसान बने उसकी तरह परेशानियां उठाए उसकी तरह कर्ज में डूबा रहे उसकी वजह यही है कि हमने हमेशा से किसान को नीची नजर से देखा है जब किसान की बात आई तो सब चुप हो गए जब भूखमरी की बात आई तो सब चुप हो गए जब आत्महत्या की बात आई तो सब चुप हो गए बस हुई तो राजनीती हुई किसी की मौत पर भी रोटियां सेकने से बाज नहीं आए किसी की चिता का भी सौदा कर लिया गया तो कभी उसे वोट बैंक में बदल लिया गया लेकिन इस सब से क्या फायदा आपको तो भर पेट खाना मिल ही गया आपके लिए तो किसान मेहनत कर ही रहा है वह जिंदगी की जद्दोजहद में लगा हुआ है शायद किसी तरह यह जिंदगी गुजर जाए काश कभी तो अच्छे दिन आए कभी तो यह नारा भी सच हो कि बदल रहा है देश बदल रहा है किसान बड़े बड़े मुद्दे आते हैं और चले जाते हैं बड़े-बड़े नारे आते हैं और चले जाते हैं नेताओं के भाषण तो मैं सुन सुन कर थक गया हूं मैं इसे ढोंग कहूंगा
एक किसान तो किसान है उसे किसी के धर्म से क्या मतलब उसे किसी कार वाले की जिंदगी से क्या मतलब उसे क्या पता ac के कमरे क्या होते हैं उसे तो बस यह पता है कि गर्मी हो या सर्दी उसे तो अपने खेत पर जाकर मेहनती करनी है ताकि उसके बच्चे दो रोटी खा सकें उसके घर में खाना बन सके हां यह बात अलग है कि वह तुम्हारे खाने के लिए इतनी मेहनत कर रहा है ताकी तुम्हारे घर तक खाना पहुंच सके उसमें उसका लालच ही तो है ताकि उसके बच्चे भूखे ना मरे सरकारी हजारों स्कीम तो बनाती हैं कभी किसान विकास योजना है तो कभी कोई और लेकिन किसान तो वहीं का वहीं खड़ा है जमीने कम हो गई खेत कम हो गए लेकिन पेट भरने के लिए जंग तो अभी जारी है जब हमारी रीढ़ की हड्डी इतनी कमजोर होगी तो हम कौन से विकास की बात करेंगे अडानी अंबानी होते तो कर्ज माफ हो जाता एक गरीब किसान कर्ज कौन माफ करेगा दो-चार नेता पैदा होते भी हैं तो वह भी शांत होकर बैठ जाते हैं और जो इमानदार उन्हें आगे ही नहीं बढ़ने दिया जाता इस सबके बीच देश विकास कर रहा है, मेरा देश बदल रहा है और ना जाने कौन कौन से नारे इस देश की तरक्की और झूठा आईना पेश करने के लिए काफी है अगर तुम्हें सच्चा हिंदुस्तान असली हिंदुस्तान देखना है तो निकलो अपने घर से और 20 25 किलोमीटर दूर जाकर किसी उस गांव को देखो जहां पर आज भी बिजली नहीं है जहां आज भी पीने को साफ पानी नहीं है जहां आज भी दिन 5:00 बजे निकल जाता है और रात शाम को 6:00 बजे हो जाती है जहां एक इंसान अपने बच्चों का पेट भरने के लिए दिनभर मेहनत करता है और शाम को घर लौटता है तो खाली कभी मौसम की मार कभी बैंक का नोटिस उसकी परेशानियां और बढ़ा देता है

लेकिन हमें इस सब से क्या फर्क पड़ता है आखिर हमारे पास तो पैसे हैं हमारे पास तो खाने को सामान है और एक किसान हमारे लिए कर तो रहा है ताकि हमारे घर में गेहूं-चावल आ सके और हम भूखे ना सोए जो इंसान तुम्हारे घर तक खाना पहुंचा रहा है उसके लिए तुम्हारा वोट क्या कर रहा है यह तुमसे सवाल करता है तुम तो विकास के नाम पर वोट देते चले जाते हो लेकिन क्या वह सरकार जिसे तुम वोट दे रहे हो उस गरीब किसान की सुध लेती है वह एक गरीब किसान की बात करती है जिसके ऊपर आज भी 20 25 हजार का कर्जा कितना बड़ा है कि उसे चुकाना मुश्किल है अगर इस देश का सही मायने में तुम्हें विकास करना है तो इस देश के किसान को शसक्तीकरण करना होगा जब तक इस देश का किसान शक्तिशाली नहीं होगा जब तक यहां पर भुखमरी खत्म नहीं होगी तब तक इस देश में विकास होना असंभव है क्योंकि हम और तुम हर तरीके से अगर जुड़े हैं तो वह किसानों से जुड़े हैं भले ही तुम मत सोचो लेकिन सच्चाई को नकार नहीं सकते और अगर आपको आज भी मेरी बात पर यकीन ना हो तो शाम को जब अपने परिवार के साथ खाना खाने बैठे तो सवाल करना अपने आप से क्या मेरी बात गलत है

Friday, November 25, 2016

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय का एक छात्र लापता है

साइम इसरार के कलम से●●●●●
बहुत दिन से सुनते आ रहे हैं जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय का एक छात्र लापता है कुछ दीवाने उसके लिए आवाज उठा रहे हैं और एक माह से इन सर्द रातों में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के एडमिन ब्लॉक के सामने बैठी है शायद इस इंतजार में वो बच्चा कहीं से आ जाए लेकिन मुझे अफसोस तब होता है जब न्यूज़ चैनलों पर खबरें तो बहुत आती है और नजीब की बात कोई नहीं करता शायद इसलिए कि वह उनका बच्चा नहीं है, या उसके गुम हो जाने से किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर परिवार से मिलने के लिए समय तक नहीं जुटा पा रहे हैं और वही आरोपी छात्र खुली हवा में सांस ले रहे हैं क्योंकि उनके ऊपर किसी बड़े नेता का हाथ है, हो सकता है उनसे पूछताछ की गई तो वोट का एक बड़ा तबका खिसक जाएगा ,लेकिन यह कौनसा इंसाफ है
उसकी मां रो रही है और सारा सरकारी तंत्र चुप है शायद इसलिए कि वह नजीब है एक छोटी सी जगह बदायूं जो बरेली के पास है आज उसे पूरा देश जानने लगा है कि वह नजीब का शहर है ,मैं बरेली वालों से भी पूछना चाहता हूं और उन सामाजिक संस्थाओं से पूछना चाहता हूं जो बड़े-बड़े वादे तो करते हैं लेकिन इस तरह के मसलों पर आकर चुप हो जाते हैं मैं उन तमाम संस्थाओं के उन समाजसेवी जो कि सफ़ेद कुर्ते के अंदर छुपे हुए एक नेता भी हैं उन लोगों से भी पूछता हूं कि वह नजीब के लिए क्या कर रहे हैं ,नजीब के लिए आवाज उठाने के लिए किसी के पास वक्त नहीं है क्योंकि नजीब का मुद्दा किसी पैसे से जुड़ा हुआ मुद्दा नहीं है इस से किसी को वोट नहीं मिलने वाले , गुनाहगार सिर्फ वह तीन नहीं है जिन्होंने नजीब को मारा गुनाहगार हम सब हैं जो आज तक चुप बैठे हैं उस बेगुनाह के लिए आवाज तक नहीं उठा सके यह कैसी इंसानियत है
लानत है ऐसे नेताओं और फ़र्ज़ी समाज सेवियो  पर जो जनता की आवाज होने का वादा तो करते हैं  लेकिन मुश्किल घड़ी में  कमरों के अंदर  छुप कर बैठ जाते हैं
हां मैं गर्व से कह सकता हूं  मैं नजीब का भाई हूं  मैं उसके लिए आवाज़ उठाऊंगा  मैंने उसके लिए आवाज उठाई भी है  और मैं उसके लिए आवाज उठाता भी रहूंगा  क्योंकि मैं एक छात्र हूं  इसलिए मैं उसका भाई हूं वह हिंदू है या मुसलमान है मुझे इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता  कल रोहित था  तब भी मैंने उसकी  आवाज से आवाज मिलाई थी  आज अजीब है तो भी आवाज उठा रहा हूं , कल कोई और भी हो सकता है आज नजीब है तो कल मैं भी हो सकता हूं उसके बाद तुम्हारा नंबर आना है शांत रहो चुप रहो अपने नंबर का इंतजार करो 
क्या पता कब कौन किस पर इल्जाम लगा दे  कब कौन देशद्रोही हो जाए यहां पर सर्टिफिकेट तो फ्री में मिलने लगे हैं  अपनी बारी का इंतजार करें  तुम्हारा क्या जाता है किसी मां का बेटा चला गया किसी का भाई गया किसी की सारी उम्र की कमाई चली गई तुम चुप हो क्योंकि वह तुम्हारा कोई नहीं था मेरा तो भाई है मैं तो बोलूंगा तुम्हें बुरा लगे तो चुप रहो मैं तो बोलूंगा वह मेरा भाई है वह बरेली का है वह नजीब है वह रोहित भी हो सकता था
हिंदू मुसलमान होना एक अलग बात है वह इंसान है और इंसान के लिए इंसान को खड़ा होना है यह एक अहम बात है तुम जानो तुम्हारा काम जाने मैं अपना फर्ज तो पूरा कर रहा हूं आगे तुम जानो आगे तुम सोचो क्या नजीब तुम्हारा कोई था , नजीब से तुम्हारा कोई रिश्ता है उस मां के आंसुओं के साथ तुम्हारा कौन सा जुड़ाव है उस मां के आंसुओं के साथ तुम्हारा कौन सा रिश्ता है क्या उस मां का चेहरा तुम्हारी मां की तरह नहीं है हो सके तो आज रात सोने से पहले सोच लेना कि वह नजीब था वह नजीब है वह रोहिता था ,कल मैं भी हो सकता हूं कल तुम भी हो सकता हूं अपनी बारी का इंतजार करते रहिए शांत रहिए ज्यादा बोलोगे तो राष्ट्रविरोधी हो जाओगे फिलहाल तो मार्केट में नोट बदलने की चिंता सब को सता रही है ,मैं तो चला तुम अपना सोचो आज रात यह जरूर सोचना नजीब कौन है ?उसकी मां कौन है? उसके मां के आंसू तुमसे क्या कह रहे हैं ? तुम्हारा जमीन तुमसे क्या चाहता है ?तुम्हारे अंदर का इंसान कहां चला गया है? हो सके तो मेरी बात को 2 मिनट जरुर सोचना फिलहाल मुझे तो लिखने की आदत है नजीब का मसला हो या रोहित का मसला  मुझे तो लिखना ही है

Wednesday, November 16, 2016

नोट और वोट

साइम इसरार के कलम से@@@@
यह नारा तो आपने काफी समय पहले सुन लिया होगा कि मेरा देश बदल रहा है लेकिन यह नारा सच होता हुआ मुझे आज दिख रहा है, जब लंबी लंबी कतारों में खड़े हिंदुस्तानी भारतीय प्रधानमंत्री को कोस रहे हैं मेरे लिए यह अनुभव बहुत ही खराब है आखिर जनता भी क्या करें अब मोदी जी ने देश की मुद्रा को बदलने का निर्णय लिया था तो समय सही चुन लेते एक नजर उन गरीबों की तरफ भी देख लिया होता जिनके पास मात्र दो तीन हजार रुपए जमा पूंजी है ,और शायद दिन में रिक्शा चलाकर अपना खर्चा चलाते हैं अब वह अपने दो तीन हजार रुपए को बदले लंबी लंबी लाइनों में इंतजार करें या फिर रिक्शा चला कर घर वालों को खाना खिलाएं यह निर्णय लेना उनके लिए एक कठिन विषय है, फिलहाल देश की बैंकों में कभी भी इतनी लंबी लाइन मैंने तो आज तक नहीं देखी हो सकता है आपने देखी हो देश के अंदर मुद्रा की इतनी बड़ी कमी तो मैं पहली बार देख रहा हूं अब कोई मुझसे यह कहने लगे कि मैं मोदी विरोधी हूं मैं बीजेपी का विरोध कर रहा हूं तो वह बेवकूफ होगा क्योंकि वह भी लाइन में लगने वाली स्थिति में ही है मुद्दे की बात करें तो असली हालात उन किसानों से जाकर पूछिए जिनको गेहूं की बुआई के भी पैसे नहीं है जिनके खेतों में मजदूर काम कर रहे हैं और उन्हें शाम को देने के लिए पैसे नहीं है अगर हिंदुस्तान का किसान अपनी फसल बोने में 10 दिन पीछे हो जाता है तो हिंदुस्तान की अर्थ व्यवस्था चरमरा सकती है थोड़ी सी इकनॉमिक्स हमने भी पड़ी है और हमारे भी अध्यापक काबिल ही रहे हैं तो उनका आसर तो आना हमपर लाजमी है,

Najeeb najeeb

साइम इसरार के कलम से●●●●●
बहुत दिन से सुनते आ रहे हैं जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय का एक छात्र लापता है कुछ दीवाने उसके लिए आवाज उठा रहे हैं और एक माह से इन सर्द रातों में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के एडमिन ब्लॉक के सामने बैठी है शायद इस इंतजार में वो बच्चा कहीं से आ जाए लेकिन मुझे अफसोस तब होता है जब न्यूज़ चैनलों पर खबरें तो बहुत आती है और नजीब की बात कोई नहीं करता शायद इसलिए कि वह उनका बच्चा नहीं है, या उसके गुम हो जाने से किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर परिवार से मिलने के लिए समय तक नहीं जुटा पा रहे हैं और वही आरोपी छात्र खुली हवा में सांस ले रहे हैं क्योंकि उनके ऊपर किसी बड़े नेता का हाथ है, हो सकता है उनसे पूछताछ की गई तो वोट का एक बड़ा तबका खिसक जाएगा ,लेकिन यह कौनसा इंसाफ है
उसकी मां रो रही है और सारा सरकारी तंत्र चुप है शायद इसलिए कि वह नजीब है एक छोटी सी जगह बदायूं जो बरेली के पास है आज उसे पूरा देश जानने लगा है कि वह नजीब का शहर है ,मैं बरेली वालों से भी पूछना चाहता हूं और उन सामाजिक संस्थाओं से पूछना चाहता हूं जो बड़े-बड़े वादे तो करते हैं लेकिन इस तरह के मसलों पर आकर चुप हो जाते हैं मैं उन तमाम संस्थाओं के उन समाजसेवी जो कि सफ़ेद कुर्ते के अंदर छुपे हुए एक नेता भी हैं उन लोगों से भी पूछता हूं कि वह नजीब के लिए क्या कर रहे हैं ,नजीब के लिए आवाज उठाने के लिए किसी के पास वक्त नहीं है क्योंकि नजीब का मुद्दा किसी पैसे से जुड़ा हुआ मुद्दा नहीं है इस से किसी को वोट नहीं मिलने वाले , गुनाहगार सिर्फ वह तीन नहीं है जिन्होंने नजीब को मारा गुनाहगार हम सब हैं जो आज तक चुप बैठे हैं उस बेगुनाह के लिए आवाज तक नहीं उठा सके यह कैसी इंसानियत है
लानत है ऐसे नेताओं और फ़र्ज़ी समाज सेवियो  पर जो जनता की आवाज होने का वादा तो करते हैं  लेकिन मुश्किल घड़ी में  कमरों के अंदर  छुप कर बैठ जाते हैं
हां मैं गर्व से कह सकता हूं  मैं नजीब का भाई हूं  मैं उसके लिए आवाज़ उठाऊंगा  मैंने उसके लिए आवाज उठाई भी है  और मैं उसके लिए आवाज उठाता भी रहूंगा  क्योंकि मैं एक छात्र हूं  इसलिए मैं उसका भाई हूं वह हिंदू है या मुसलमान है मुझे इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता  कल रोहित था  तब भी मैंने उसकी  आवाज से आवाज मिलाई थी  आज अजीब है तो भी आवाज उठा रहा हूं , कल कोई और भी हो सकता है आज नजीब है तो कल मैं भी हो सकता हूं उसके बाद तुम्हारा नंबर आना है शांत रहो चुप रहो अपने नंबर का इंतजार करो 
क्या पता कब कौन किस पर इल्जाम लगा दे  कब कौन देशद्रोही हो जाए यहां पर सर्टिफिकेट तो फ्री में मिलने लगे हैं  अपनी बारी का इंतजार करें  तुम्हारा क्या जाता है किसी मां का बेटा चला गया किसी का भाई गया किसी की सारी उम्र की कमाई चली गई तुम चुप हो क्योंकि वह तुम्हारा कोई नहीं था मेरा तो भाई है मैं तो बोलूंगा तुम्हें बुरा लगे तो चुप रहो मैं तो बोलूंगा वह मेरा भाई है वह बरेली का है वह नजीब है वह रोहित भी हो सकता था
हिंदू मुसलमान होना एक अलग बात है वह इंसान है और इंसान के लिए इंसान को खड़ा होना है यह एक अहम बात है तुम जानो तुम्हारा काम जाने मैं अपना फर्ज तो पूरा कर रहा हूं आगे तुम जानो आगे तुम सोचो क्या नजीब तुम्हारा कोई था , नजीब से तुम्हारा कोई रिश्ता है उस मां के आंसुओं के साथ तुम्हारा कौन सा जुड़ाव है उस मां के आंसुओं के साथ तुम्हारा कौन सा रिश्ता है क्या उस मां का चेहरा तुम्हारी मां की तरह नहीं है हो सके तो आज रात सोने से पहले सोच लेना कि वह नजीब था वह नजीब है वह रोहिता था ,कल मैं भी हो सकता हूं कल तुम भी हो सकता हूं अपनी बारी का इंतजार करते रहिए शांत रहिए ज्यादा बोलोगे तो राष्ट्रविरोधी हो जाओगे फिलहाल तो मार्केट में नोट बदलने की चिंता सब को सता रही है ,मैं तो चला तुम अपना सोचो आज रात यह जरूर सोचना नजीब कौन है ?उसकी मां कौन है? उसके मां के आंसू तुमसे क्या कह रहे हैं ? तुम्हारा जमीन तुमसे क्या चाहता है ?तुम्हारे अंदर का इंसान कहां चला गया है? हो सके तो मेरी बात को 2 मिनट जरुर सोचना फिलहाल मुझे तो लिखने की आदत है नजीब का मसला हो या रोहित का मसला  मुझे तो लिखना ही है

Wednesday, November 2, 2016

नजीब कहा है

एक युवा सोच एक युवा लेखक के सवाल जो हर युवा के दिल में है "कहाँ है नजीब"
@साइम इसरार के कलाम से●●●

आज नजीब कोई अंजान शक़्स नही है जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय का छात्र नजीब लापता है और किसी को कोई फर्क नही यह कैसा इंसाफ है साहब एक गाय के गुमजाने पर हंगामा होजाता और एक माँ का बेटा एक छात्र गयाब होजाता है पुलिस और नेता सब चुप
आज #JNU के छात्र के साथ ये नाइंसाफी क्यों?
ये वही जेनयू है जिसने कुछ महीने पहले देश की राजनीती में भूचाल खड़ा करदिया था आज एक माँ के आंसू नहीं पोछे जाते और पुलिस की क्या बात करे भाई आम आदमी पार्टी के विधायक को पकड़ने के लिए पूरी दिल्ली पुलिस लगादी जाती है और पाताल से भी खोजने की बात करते है प्रधानमंत्री जी मुस्लिम के हक़ की बात भी करते है लेकिन नजीब के मसले पर चुप रहते है कैसी नाइंसाफी है, एबीवीपी के कुछ गुंडे नजीब को मारते है गाली देते है जान से मारने की  धमकी देते है "लेकिन सब चुप " यूनिवरसिटी प्रशासन चुप रहता है और नजीब गायब होजाता है
छात्रों को भी कुछ फर्क नही पड़ता कुछ कहते है हमारी यूनिवरसिटी का मामला नही है कोई कहता है नजीब मुस्लिम है
हा है वो मुस्लिम है एक बूढ़ी माँ का बेटा है किसी का भाई है किसी की उम्मीद है लेकिन एक छात्र है वो इंसान भी है कल को नजीब की जगह तुम भी होसकते हो तुम्हारे लिये भी सब चुप रहेंगे तब भी यही कहा जायेगा
तुम्हे फर्क नही पड़ता होगा मुझे फर्क पड़ता है उस बूढ़ी माँ के आंसू मुझसे सवाल कररहे है मुझे मेरी माँ दिखती है कल मेरी माँ भी होसकती है
मै तो आवाज़ उठाऊंगा मै तो नजीब की बात करूँगा मै तो सवाल करूँगा
आखिर कहा है नजीब क्यों की मै इंसान हू मैने रोहित की बात की थी मै नजीब की बात करूँगा मुझे हिन्दू मुस्लिम से क्या लेना है मै छात्र हू और नजीब तो भाई है मेरा
तुम जानो क्या करना है तुम्हारा धर्म तुम्हे मुबारक तुम्हारी नफरते तुम जानो में तो इंसान हू मेरा इस्लाम मिझे ज़ुल्म के खिलाफ आवाज़ उठाने की शिक्षा देता है मोहब्बत की बात जनता  हू इसीलिये नजीब मेरा भाई है मै साइम इसरार हू

लेकिन तुम्हे इस बात से क्या लेना उसकी माँ से क्या लेना नजीब कोई रिश्तेदार थोड़ी है
ज़्यादा कड़वा लिखने लगा हू लकिन क्या करूँ इंसानो की भीड़ में इंसानियत ढूंढ रहा हू
●●● साइम इसरार के कलाम से

Monday, September 5, 2016

#शिक्षकदिवस की शुभकामनाएँ

#शिक्षकदिवस की शुभकामनाएँ। देश के
भविष्य निर्माण में अपनी पूरी निष्ठा,शक्ति व ऊर्जा के साथ लगे शिक्षकों को
मेरा नमन।
शिक्षक ही होते हैं जो आपको डरा कर नियमों में बाँधकर एक सटीक इंसान बनाते हैं एक अच्छे शिक्षक के लिए समानांतर रूप से छात्र बने रहने की आवश्यकता होती है उसे छात्र की सतह तक ले जाना पड़ता है
शिक्षक और शिक्षा एक दूसरे के पहलू हैं.इंसान ता उम्र दोनों भूमिकाएँ निभाता है.प्रत्येकअनुभव से सीखता है और अनुभवों के आधार पर सिखाता भी है

जिस शिक्षक के भीतर विद्रोह की अग्नि नहीं है वह केवल किसी न किसी निहित स्वार्थ का, चाहे समाज, चाहे धर्म, चाहे राजनीति, उसका एजेंट होगा शिक्षक के भीतर ज्वलंत अग्नि होनी चाहिए विद्रोह की, चिंतन की, सोच की। क्या उनमें सोचने की अग्नि है, और अगर नहीं है तो वो भी एक दुकानदार है।

पाप व लालच से डरने की
धर्मीय सीख सिखाता शिक्षक,

देश के लिए मर मिटने की
बलिदानी राह दिखाता शिक्षक

प्रकाशपुंज का आधार बनकर
कर्तव्य अपना निभाता शिक्षक

प्रेम सरिता की बनकर धारा
नैया पार लगाता शिक्षक

Wednesday, August 24, 2016

एक अधूरा सफर का मतलब


एक अधूरा सफर

कई दिन सोचने के बाद मैंने अपनी किताब का नाम एक अधूरा सफर रखा था ,क्योंकि मैंने आज तक जितनी भी जिंदगियों को पढ़ा उनमें से किसी का भी सफर मुकम्मल ना हो सका किसी के कुछ ना कुछ ख्वाब जरूर अधूरे रह गए ,बहुत से ऐसे वाक्य पढ़ें जो कभी मुकम्मल ही ना हो सके ,बहुत से ऐसे लोगों से मिले जिन्होंने अपने बारे में बहुत कुछ बताया उसके बाद भी उनका सपना अधूरा ही था, कुछ ऐसा ही सफर मेरी जिंदगी का भी है जो शायद मुकम्मल न हो सका इसीलिए मैं अपनी किताब का नाम बहुत सोच समझ ने के बाद एक अधूरा सफर रखा है किताब का नाम एक अधूरा सफर सिर्फ नाम ही नहीं है इस नाम  के अंदर ही पूरी किताब लिख दी गई है ,बहुत से ऐसे जज़्बात हैं जिन्हें लफ़्ज़ों में ढालने की कोशिश की है, बहुत सी ऐसी बातें हैं जिन चीजों को मैंने अल्फाजों में पिरोया है कुछ अधूरे ख्वाब हैं ,कुछ अधूरे रास्ते हैं और कुछ अधूरी मंजिलें इस किताब में बहुत कुछ ऐसा है जो आप लोगों की जिंदगी से मिलता-जुलता होगा फिर भी कोशिश कर रहा हूं इस से और अच्छा लिख सकूं वह लिखूं जो जिंदगी की हकीकत है ,एक मुकम्मल सफर की कोशिश में वह सफर जो अधूरा रह गया जब जिंदगी से जाएंगे तो पता नहीं कितने ख्वाब इन आंखों में साथ चले जाएंगे कुछ ऐसी ख्वाहिशें जाएंगी जो पूरी न हुई कुछ ख्वाब जो पूरे होकर भी अधूरे रह गए मंजिल मिली तो रास्ता छूटता चला गया लोग मिले तो वास्ता टूटता चला गया

एक अधूरा सफर
(जिंदगी की हकीकत के साथ)
साइम इसरार
  की अधूरी कोशिश