Tuesday, December 27, 2016

●● साइम इसरार के कलाम से किसान का दर्द●●●

◆●● साइम इसरार के कलाम से किसान का दर्द●●●

मेरा होश खो गया लहू के उबाल में, कैदी होकर रह गया हूं इसी सवाल में, आत्महत्या की चिता पर देख कर किसान को ,
नींद कैसे आ रही है देश के प्रधान को

हिंदुस्तान में 3 लाख लोग ऐसे हैं जो बिना खाए सो जाते हैं जिन्हें दो वक्त की रोटी नहीं मिलती जिन्हें यह नहीं पता कि रात को क्या खाना है या भूखे ही सो जाना है और 14 हजार किसान पिछले 5 साल में भुखमरी के शिकार होकर आत्महत्या कर लेते हैं यह वही भारत है जिसके कुल 26 लोग दुनिया के एक हजार अमीर लोगों में गिनती आती है जिस देश के 24 करोड़ आबादी गरीबी रेखा से नीचे जिंदगी जीती हो और ना जाने ऐसे कितने नजारे रात को 9:00 बजे के बाद बड़े-बड़े शहरों की सड़कों पर आपको  देखने को मिल जाएंगे जो फुटपाथ पर अखबार बिछाए दो वक्त की रोटी कमाने की जद्दोजहद में इस ठंड के मौसम में आराम की नींद ले रहे हैं आराम इसलिए कह रहा हूं क्योंकि वह इतना थक जाते हैं क्यों नहीं यह भी नहीं पता लगता कि मौसम कितना ठंडा है या गर्म यह सब कोई आम बात नहीं है मेरा सवाल उन लोगों से है जो दो वक्त की भर पेट रोटी खा लेते हैं और उन्हें यह भी नहीं पता कि कितने आज भूखे सोए हैं ऐसा क्यों है आजादी के इतने साल बाद भी आज भी भूखमरी और किसानों की आत्महत्या इस देश में क्या बता रही है
यह हमसे सवाल पूछ रही है कौन से विकास की बातें करते हो पहले दो वक्त की रोटी का इंतजाम कर लो,  आपको यह भी बताता चालू इस देश में जितने भी कलेक्टर हैं सब को एक फंड मिलता है जो भूखमरी राहत कोस्ट के नाम से होता है  उस फंड का क्या इस्तेमाल होता है और इसी तरह न जाने कितने फंड जो विधायको और सांसदों को विकास के नाम पर दिए जाते हैं मेरा सीधा सवाल हमारे नेताओं सांसदों और विधायकों से हैं जोकि अपने अपने इलाकों में भूखमरी रोकने में नाकाम हुए हैं अगर हिंदुस्तान को आजाद हुए सालों के बाद भी हम इस स्थिति पर खड़े हैं उसका जिम्मेदार कौन है और कौन से विकास की बात होती है मुझे तो यही समझ नहीं आता इस देश का अन्नदाता किसान है और किसानों  कर्ज में डूबे हुए है बड़े बड़े उद्योगपतियों का कर्ज माफ हो जाता है और किसान कर्ज के चक्कर में आत्महत्या कर लेता है कभी उस पर ब्याज की मार कभी उस पर मौसम की मार आटा खरीदते हुए कभी नहीं सोचा होगा यह  कहां से आता है और इसके लिए कितनी मेहनत करनी पड़ती है इतना जरूर सोचा होगा आरे अटा 20 रुपए किलो है इतना महंगा हर 5 साल पर नई सरकारें बन जाती हैं नए नेता बदल जाते हैं मगर देश का हाल नहीं बदलता और किसान अपने पुराने दिनों की तरह जिंदगी से लड़ता हुआ दो वक्त की रोटी कमाने में लगा रहता है
अब तो किसान भी कहना गलत होगा क्योंकि कोई किसान यह नहीं चाहता कि उसका बेटा कभी किसान बने उसकी तरह परेशानियां उठाए उसकी तरह कर्ज में डूबा रहे उसकी वजह यही है कि हमने हमेशा से किसान को नीची नजर से देखा है जब किसान की बात आई तो सब चुप हो गए जब भूखमरी की बात आई तो सब चुप हो गए जब आत्महत्या की बात आई तो सब चुप हो गए बस हुई तो राजनीती हुई किसी की मौत पर भी रोटियां सेकने से बाज नहीं आए किसी की चिता का भी सौदा कर लिया गया तो कभी उसे वोट बैंक में बदल लिया गया लेकिन इस सब से क्या फायदा आपको तो भर पेट खाना मिल ही गया आपके लिए तो किसान मेहनत कर ही रहा है वह जिंदगी की जद्दोजहद में लगा हुआ है शायद किसी तरह यह जिंदगी गुजर जाए काश कभी तो अच्छे दिन आए कभी तो यह नारा भी सच हो कि बदल रहा है देश बदल रहा है किसान बड़े बड़े मुद्दे आते हैं और चले जाते हैं बड़े-बड़े नारे आते हैं और चले जाते हैं नेताओं के भाषण तो मैं सुन सुन कर थक गया हूं मैं इसे ढोंग कहूंगा
एक किसान तो किसान है उसे किसी के धर्म से क्या मतलब उसे किसी कार वाले की जिंदगी से क्या मतलब उसे क्या पता ac के कमरे क्या होते हैं उसे तो बस यह पता है कि गर्मी हो या सर्दी उसे तो अपने खेत पर जाकर मेहनती करनी है ताकि उसके बच्चे दो रोटी खा सकें उसके घर में खाना बन सके हां यह बात अलग है कि वह तुम्हारे खाने के लिए इतनी मेहनत कर रहा है ताकी तुम्हारे घर तक खाना पहुंच सके उसमें उसका लालच ही तो है ताकि उसके बच्चे भूखे ना मरे सरकारी हजारों स्कीम तो बनाती हैं कभी किसान विकास योजना है तो कभी कोई और लेकिन किसान तो वहीं का वहीं खड़ा है जमीने कम हो गई खेत कम हो गए लेकिन पेट भरने के लिए जंग तो अभी जारी है जब हमारी रीढ़ की हड्डी इतनी कमजोर होगी तो हम कौन से विकास की बात करेंगे अडानी अंबानी होते तो कर्ज माफ हो जाता एक गरीब किसान कर्ज कौन माफ करेगा दो-चार नेता पैदा होते भी हैं तो वह भी शांत होकर बैठ जाते हैं और जो इमानदार उन्हें आगे ही नहीं बढ़ने दिया जाता इस सबके बीच देश विकास कर रहा है, मेरा देश बदल रहा है और ना जाने कौन कौन से नारे इस देश की तरक्की और झूठा आईना पेश करने के लिए काफी है अगर तुम्हें सच्चा हिंदुस्तान असली हिंदुस्तान देखना है तो निकलो अपने घर से और 20 25 किलोमीटर दूर जाकर किसी उस गांव को देखो जहां पर आज भी बिजली नहीं है जहां आज भी पीने को साफ पानी नहीं है जहां आज भी दिन 5:00 बजे निकल जाता है और रात शाम को 6:00 बजे हो जाती है जहां एक इंसान अपने बच्चों का पेट भरने के लिए दिनभर मेहनत करता है और शाम को घर लौटता है तो खाली कभी मौसम की मार कभी बैंक का नोटिस उसकी परेशानियां और बढ़ा देता है

लेकिन हमें इस सब से क्या फर्क पड़ता है आखिर हमारे पास तो पैसे हैं हमारे पास तो खाने को सामान है और एक किसान हमारे लिए कर तो रहा है ताकि हमारे घर में गेहूं-चावल आ सके और हम भूखे ना सोए जो इंसान तुम्हारे घर तक खाना पहुंचा रहा है उसके लिए तुम्हारा वोट क्या कर रहा है यह तुमसे सवाल करता है तुम तो विकास के नाम पर वोट देते चले जाते हो लेकिन क्या वह सरकार जिसे तुम वोट दे रहे हो उस गरीब किसान की सुध लेती है वह एक गरीब किसान की बात करती है जिसके ऊपर आज भी 20 25 हजार का कर्जा कितना बड़ा है कि उसे चुकाना मुश्किल है अगर इस देश का सही मायने में तुम्हें विकास करना है तो इस देश के किसान को शसक्तीकरण करना होगा जब तक इस देश का किसान शक्तिशाली नहीं होगा जब तक यहां पर भुखमरी खत्म नहीं होगी तब तक इस देश में विकास होना असंभव है क्योंकि हम और तुम हर तरीके से अगर जुड़े हैं तो वह किसानों से जुड़े हैं भले ही तुम मत सोचो लेकिन सच्चाई को नकार नहीं सकते और अगर आपको आज भी मेरी बात पर यकीन ना हो तो शाम को जब अपने परिवार के साथ खाना खाने बैठे तो सवाल करना अपने आप से क्या मेरी बात गलत है

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