Wednesday, November 16, 2016

नोट और वोट

साइम इसरार के कलम से@@@@
यह नारा तो आपने काफी समय पहले सुन लिया होगा कि मेरा देश बदल रहा है लेकिन यह नारा सच होता हुआ मुझे आज दिख रहा है, जब लंबी लंबी कतारों में खड़े हिंदुस्तानी भारतीय प्रधानमंत्री को कोस रहे हैं मेरे लिए यह अनुभव बहुत ही खराब है आखिर जनता भी क्या करें अब मोदी जी ने देश की मुद्रा को बदलने का निर्णय लिया था तो समय सही चुन लेते एक नजर उन गरीबों की तरफ भी देख लिया होता जिनके पास मात्र दो तीन हजार रुपए जमा पूंजी है ,और शायद दिन में रिक्शा चलाकर अपना खर्चा चलाते हैं अब वह अपने दो तीन हजार रुपए को बदले लंबी लंबी लाइनों में इंतजार करें या फिर रिक्शा चला कर घर वालों को खाना खिलाएं यह निर्णय लेना उनके लिए एक कठिन विषय है, फिलहाल देश की बैंकों में कभी भी इतनी लंबी लाइन मैंने तो आज तक नहीं देखी हो सकता है आपने देखी हो देश के अंदर मुद्रा की इतनी बड़ी कमी तो मैं पहली बार देख रहा हूं अब कोई मुझसे यह कहने लगे कि मैं मोदी विरोधी हूं मैं बीजेपी का विरोध कर रहा हूं तो वह बेवकूफ होगा क्योंकि वह भी लाइन में लगने वाली स्थिति में ही है मुद्दे की बात करें तो असली हालात उन किसानों से जाकर पूछिए जिनको गेहूं की बुआई के भी पैसे नहीं है जिनके खेतों में मजदूर काम कर रहे हैं और उन्हें शाम को देने के लिए पैसे नहीं है अगर हिंदुस्तान का किसान अपनी फसल बोने में 10 दिन पीछे हो जाता है तो हिंदुस्तान की अर्थ व्यवस्था चरमरा सकती है थोड़ी सी इकनॉमिक्स हमने भी पड़ी है और हमारे भी अध्यापक काबिल ही रहे हैं तो उनका आसर तो आना हमपर लाजमी है,

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