Sunday, May 3, 2015

मॉं MAA

मां को समर्पित एक कविता

लेती नहीं दवाई  मां
जोड़े पाई-पाई माँ।
दुःख थे पर्वत, राई माँ
हारी नहीं लड़ाई माँ ।
इस दुनियां में सब मैले हैं
किस दुनियां से आई माँ ।
दुनिया के सब रिश्ते ठंडे
गरमागर्म रजाई माँ।
जब भी कोई रिश्ता उधड़े
करती है तुरपाई माँ।
बाबू जी तनख़ा लाये बस
लेकिन बरक़त लाई माँ।
बाबूजी थे सख्त  मगर ,
माखन और मलाई माँ ।
बाबूजी के पाँव दबा कर
सब तीरथ हो आई माँ।
नाम सभी हैं गुड़ से मीठे
मां जी, मैया, माई, माँ ।
सभी साड़ियाँ छीज गई थीं
मगर नहीं कह पाई माँ।
माँ  से थोड़ी - थोड़ी
सबने रोज़ चुराई माँ।
घर में चूल्हे मत बाँटो रे
देती रही दुहाई  माँ ।
बाबूजी बीमार पड़े जब
साथ-साथ मुरझाई माँ।
रोती है लेकिन छुप-छुप कर
बड़े सब्र की जाई माँ ।
लड़ते-लड़ते, सहते-सहते,
रह गई एक तिहाई माँ ।
बेटी की ससुराल रहे खुश
सब ज़ेवर दे आई माँ।
माँ से घर, घर लगता है
घर में घुली, समाई माँ।
बेटे की कुर्सी है ऊँची,
पर उसकी ऊँचाई माँ।
दर्द बड़ा हो या छोटा हो
याद हमेशा आई माँ।
घर के शगुन सभी माँ से,
है घर की शहनाई माँ।
सभी पराये हो जाते हैं,
होती नहीं पराई माँ
(कवि का नाम अज्ञात है, लेकिन जिसकी भी है यह रचना, उसे बहुत बहुत साधुवाद।)

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