Wednesday, April 6, 2016

शहादत को सलाम

✒✒ साइम इसरार के कलम से आज की हकीकत
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"मैं देश नहीं झुकने दूँगा" भी एक चुनावी जुमला साबित हो ही गया"

सच बात यह है हम कितना भी लिखले लेकिन तनज़ील सहाब की शाहदत के सामने कुछ भी नही लिख सका हूँ वो मासूम बच्चे , वो अस्पताल में ज़िन्दगी से जंग लड़ती वो मासूम बच्चों की माँ वो शहादत वो खून से लथ पथ लाश आखिर क्या कुसूर था उन मासूम बच्चों का जिन्हें एक पल में उनकी आँखो के सामने यतीम करदिया गया और वो औरत जिसको उसकी आँखो के सामने बेवा करदिया यह हमला तनज़ील सहाब पर नही कानून व्यवस्था पर हमला है उन तमाम लोगो पर हमला है जो ईमानदारी से अपने काम को आजम देरहे है आज तनज़ील सहाब और उनकी बीवी है तो कल कोई और यह सिलसिला यह खून की होली कब थमेगी खुदा जाने लेकिन
पठानकोट हमले की जांच करने वाले NIA के अफसर शहीद तंजील अहमद की हत्या इस बात की ओर इशारा करती है कि शायद कोई बहुत बड़ा सच उनके हाथ लग गया था जिस वजह से उन्हें रास्ते से हटा दिया गया क्यों की वो एक क़ाबिल अफसर थे शायद हेमंत करकरे की तरहा लेकिन
इस वारदात को बड़ी साजिश के तहत अंजाम दिया गया है तंजील अहमद मूलरूप से बिजनौर के सहसपुर के रहने वाले थे वह परिवार के साथ दिल्ली में रहते थे पर उनको  क्या मालूम था की इस जाच में शामिल होने की इतनी बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी वो मासूम बच्चे यतीम होजाएंगे सोचने वाली बात यह है की यह तनज़ील सहाब पर पहला हमला नही था तो उनके साथ कोई खास सिक्योरिटी क्यों नही थी , जिस तरह से 28 फायर हुए, यानि क्लेशनव या 9 एम् एम् के तीन असले इस्तेमाल हुए यह साधारण अपराधी का काम नहीं है
कई सवाल खड़े करती है यह हत्या लेकिन बहादुर जांबाज़ डिप्टी एसपी तनज़ील अहमद साहब ने देश के दुश्मनो के ख़िलाफ़ जंग में अपनी जान देकर देश के लिये अपने फ़र्ज़ को अंजाम दिया
अल्लह आपकी मग़फ़िरत करें।और जन्नत में आला मुक़ाम से नवाज़े

"वतन पे मिटने का हमारा दस्तूर रहा है।।
जिन्हें मालूम नही ये उनका क़सूर रहा है

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