Wednesday, April 27, 2016

पेज 3 एक अधूरा सफ़र

   किताब का नाम "एक अधूरा सफ़र"
  ★★★ एक शरारती बच्चा ★★★
पेज 3

कुछ ख़ास बाते जो आज भी ज़हन में ताज़ा है वो हँसने पर मजबूर करती है जब भी याद आती है तो चेहरे पर एक अलग बहार लाती है , रोज़ एक नया काण्ड तो समझो आदत सी होगयी थी , वैसे तो मास्टर साहब से मार खाना आम बात थी और शरारत भी नयी नयी होती थी, एक हमारी साथी जो लड़की थी उस लड़की को बड़ा परशान करते उस से नए नए नाम से परशान करते थे,रोज़ यही रहता एक दिन उसने तंग आकर शिकायत करदी तो मास्टर साहब ने जमकर मार लगायी आज भी याद है वो पिटाई वो लड़की और वो मास्टर साहब भी बस कुछ दिन गुज़रे ही थे की मेरी माँ की ताब्यात ख़राब होगयी , चाचा हमें पढ़ाने लगे और चाचा ने ही एग्जाम के वक़्त हम को पूरी तैयारी कराते मेरे चाचा जो की मेरे उस्ताद (शिक्षक) भी रहे है वो मुझे हर छोटी से छोटी चीज़ बड़े प्यार से तो कभी डाट कर समझते थे, सच बताऊ तो उनसे डर भी बहुत लगता था लेकिन नादान बचपन कहो या बेवकूफी पूरा पेपर आते हुए भी सिर्फ पास होने के बराबर करकर आया दोस्तो ने पूछातो तो कहता क्यों खली मेहनत करू लिखने में, आता सब है पर नंबर पास होने लायक ही ज़रूरत है एक अलग ही सोच थी , जब घर आते तो पेपर के सवाल पूछे जाते हमेशा पूरा पेपर सुनाता , बड़ी शाबाशी मिलती शायद नादाँ था या बेवकूफ जब रिजल्ट आया तो सिर्फ पासिंग नंबर देखकर चाचा को यकीन नही हुआ स्कूल में जाकर कॉपी देखी गयी अब क्या होना था वहा तो सब खाली था , जितना लिखा था नंबर उतने ही मिले प्रिंसिपल ने पूछा तो जवाब नही दिया आखो में आसू थे और थोड़ी शर्म भी थी क्योंकि शाम को पिटाई होनी तै थी जब घर पंहुचा तो मेरे दोस्तों को भी बुलाया गया उनसे भी पूछताछ हुई मनो कोई चोरी करी हो हा धोका तो दिया ही था , उन्होंने वही बात बतादी जो "मै कहता था लिखने की क्या ज़रूरत है आता सब है बस पास ही तो होना है ", बस इतना सुनते ही चाचा ने पास में रखे हुये डंडे से खूब पिटाई की बछाने भी कोई नही आया क्यों की गलती बहुत बड़ी थी जमकर पिटाई हुयी अम्मी ने भी मार लागई चाचा ने भी और पापा ने भी नही बक्शा शायद पापा के दिमाग में हॉस्टिल का आईडिया तभी आया होगा क्यों की क्यों की कुछ दिन बाद हॉस्टिल में भर्ती करदिया गया था अब शुरू होता है होस्टल का सफ़र

●●● आगे जरी रहेगा●●●
किताब "एक अधूरा सफ़र"

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