Wednesday, May 11, 2016

कोई खास

मेरी किताब "एक अधूरा सफ़र"

★★★★कोई खास★★★★


"कोई खास" एक कहानी है जो ज़िन्दगी में भुत खास ते जिन्हे हमपर यकीन और हमे उनपर यकीन था ,इस कहानी की शुरूरत इस शेर से अछि क्या होसकती थी

"कच्चे बखिए की तरह रिश्ते उधड़ जाते हैं
हर नए मोड़ पर कुछ लोग बिछड़ जाते हैं"

बात उन दिनों की है जब मै कक्षा11वी में था कुछ लोग जो मेरी ज़िन्दगी में नये जुड़ रहे थे ,और कुछ बिछड़ चुके थे अगर सबका नाम लिखदु तो जगह कम होगी।।
एक शक्स जिसका मिजाज़ बड़ा शांत और सरल , नूरानी चहरा और दाढ़ी बोलने का अंदाज़ एसा जिसपर कोई भी फ़िदा होजाये , मेरे दिल के बेहद करीब सब के चाहिता , क़ाबलियत से भरपुरब बिना किताब हात में लिये सब कुछ पढा देते मै बात कररहा हू बरेली के मशुर एकाउंटेंसी के मास्टर " सर शनवाज़ खान " की जितनी हमारी उम्र थी उससे भी ज़्यादा उनका तजुरबा था, अपने दिल की सुनते कभी किसी के दवाब में काम नही किया पूरी ईमानदारी से अपना फ़र्ज़ निभाते थे, बच्चे उनपर फ़िदा थे उनसे लगाव इतना था के वो जब जाने को थे तो मै अपने आसु नही रोक सका बहुत रोया था पता नही दिल से इज़्ज़त एक अलग ही चीज़ थे चंद दिनों में हमपर एसा जादू करा के कोई भी उनकी जगह नही लेपया पूरा साल मनो किताब कुछ न पड़कर भी सब कुछ सिखागये थे कभी किताब नही खोली , खुद अपने सवाल देते खुद समझते 10 बार पूछने पर भी कभी गुस्सा नही आया ,
●● सफ़र जारी रहेगा●●
किताब एक अधूरा सफ़र 

पड़ाव 3
साइम इसरार

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