Saturday, March 25, 2017

भूका पेट

●●●@साइम इसरार के कलम से●●●
*एक भूका पेट*

जिसे चैन से रोटी मिल जाए उसे भूखे पेट की तड़प का अंदाज़ा नहीं होता
शहर की बड़ी-बड़ी कारें रोड पर फर्राटा भरती हुई मानो ऐसा लग रहा था जैसे वक्त की कीमत लगा दी हो हर आदमी जल्दी में था ,रोड के किनारे फुटपाथ पर कुछ जिंदगियां रेंगती हुई चल रही थी जो बिल्कुल अलग नजारा था रोड के विपरीत।
एक तरफ जिंदगी रेस लगा रही थी और दूसरी तरफ कुछ जिंदगियां घिसटती हुई अपना वक्त बिता रही थी फर्क ज्यादा नहीं था दोनों ही इंसान थे और दोनों ही कुछ पाना चाहते थे फुटपाथ पर रहने वाली जिंदगी अपना पेट भरने के लिए रेंग रही थी और दूसरी ओर अपनी ख्वाइशों को पूरा करने की जिद में रेस हो रही थी।
नजारा उसी शहर का था रेलवे स्टेशन के पास कुछ झोपड़ियां भी मिली और वहां भूखे पेट की तड़प भी महसूस हो रही थी, तन पर फटे हुए कपड़े और नंगे पैर चलते मासूम बच्चे एहसास दिला रहे थे कि जिंदगी हमारी भी है, बस फर्क इतना है कोई मखमली कालीन पर चलता है और कोई पत्थरों पर किसी के पैर गुलाब जैसे कोमल होते हैं और किसी के पैरों से खून टपकता है ज्यादा फर्क तो नहीं रंग दोनों के पैरों का गुलाबी होता है।
बराबर से गुजरती हुई एक ट्रेन ने झकझोर देने वाली एक तस्वीर दिखा दी अचानक ट्रेन की खिड़की में से किसी ने बचा हुआ खाना फेंका था शायद उसका पेट भरने के बाद बच गया होगा लेकिन जिनका खाली था वह भाग कर उस खाने की तरफ उम्मीद के साथ के शायद अब तो यह भूख मिट जाए आज की रोटी का इंतजाम हो जाए चार पांच बच्चे और एक रोटी उस पर लगी हुई थोड़ी सी सब्जी यह बता रही थी पेट की तड़प क्या होती है और गरीबी किसे कहते हैं बच्चों से मुलाकात करने का इससे अच्छा मौका क्या होता जो असली जिंदगी का पाठ दे रहे थे सवाल पूछने पर जवाब भी कुछ अलग ही था एक बच्चे ने नम आंखों से अपनी जिंदगी चार लफ़्ज़ों में ऐसे बयान कर दी मानव वहां पर खड़ी हुई इंसानियत पलभर में नीलाम हो गई ।
उसकी आंख से आंख मिलाने की हिम्मत जुटाना भी मुश्किल था समझ नहीं आया उसने जवाब दिया है या सवाल किया है लेकिन जो भी था सच था वह शब्द हमेशा याद रहेंगे
*बाबूजी भूख लगी थी*
मैंने सोचा शायद यह हिंदू होंगे फर्क लगा तो सोचा यह तो मुस्लिम लगते हैं नाम पूछने पर पता लगा एक रमेश दूसरा आसिफ तीसरा जॉनी चौथा सुखदेव
मैंने तो सोचा था यहां सब मिलकर एक रोटी कैसे खा रहे हैं कितनी मोहब्बत है अपने हिस्से की भी कोई रोटी अपने दोस्त अपने साथी को दे देता है इसलिए धर्म जात पात से ऊपर उठकर अपनी भूकं और प्याज की लड़ाई लड़ रहे हैं इन्हें धर्म से क्या मतलब इन्हें जात से क्या मतलब इन को भूख लगी थी उनकी जरूरत एक है' उनकी चाहत एक
वहां से निकलने के बाद शहर की एक बड़ी कॉलोनी पहुंच गए दरवाजे पर लगी हुई बड़ी-बड़ी प्लेटे नाम और पोस्ट बता रही थी कोई बीटेक,  कोई MBA ,कोई पीएचडी देखने से तो अच्छा लगा लेकिन सामने से आ रे एक भिखारी ने दरवाजा खटखटाया तो अंदर से जवाब मिला यह हिंदू का घर है मुसलमान आगे रहते हैं और मुसलमान के यहां पहुंचा उसने कहा हिंदू पीछे रहते हैं उसका एक ही सवाल था साहब *मैं भूखा हूं मुझे खाना दे दो* लेकिन न हिंदू ने दिया ना मुसलमान ने दिया शायद जितने शिक्षित थे उतने ही खोखले उनके संस्कार थे जो एक भिखारी को एक भूखे को खाना ना दे सके
सबके घरों में लंबी-लंबी कारें खड़ी थी बड़े-बड़े बंगले थे बस एक ही चीज की कमी दिखी वहां इंसान नहीं थे यह दृश्य देखकर इंसानियत को शर्मसार हो ही गई और अमीरी नीलाम हो गई मैं वहां खड़ा था जहां इंसानियत दम तोड़ रही थी नजरों में परायापन जेब में पैसे और हर इंसान अपनी जिंदगी जीने में मस्त यह बता रहा था कि
*हम तो जिंदा हैं मरे हुए जमीर के साथ , और तुम भी चले जाओ इस तस्वीर के साथ*

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